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Saptahik Rashifal

Saptahik Rashifal Aur Panchang, 28 जुलाई से 3 अगस्त  2024 तक की भविष्यवाणियां| प्रेम जीवन की भविष्यवाणी, आने वाले सप्ताह में किस राशि के जातकों को लाभ मिलेगा, आने वाले सप्ताह के महत्वपूर्ण दिन और राशिफल, जानें आने वाले सप्ताह में कितने सर्वार्थ सिद्धि योग और महत्वपूर्ण दिन मिलेंगे। आगामी साप्ताहिक सर्वार्थ सिद्धि योग: 28जुलाई को सूर्योदय से 3:34 दिन तक रहेगा सर्वार्थ सिद्धि योग | 30 जुलाई को सूर्योदय से 1:07 दिन तक रहेगा सर्वार्थ सिद्धी योग | 31 तारीख को सूर्योदय से रात्री अंत तक रहेगा सर्वार्थ सिद्धि योग | Saptahik Rashifal आइए अब जानते हैं कि आने वाले सप्ताह में हमें कौन से महत्वपूर्ण दिन मिलेंगे: पंचक 23 जुलाई मंगलवार को 12:07 दिन से शुरू होंगे और 27 तारीख को शाम 5:06 बजे तक रहेंगे | शीतला सप्तमी 27 को है | श्रावण सोमवार 29 को है। मंगला गौरी व्रत 30 जुलाई को है। कामिका एकादशी 31 जुलाई बुधवार को है। कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत 1 अगस्त गरुवार को है | शिव चतुर्दशी व्रत 2 तारीख शुक्रवार को है | आगामी सप्ताह का पूरा पंचांग और महूरत पढ़ें आइए अब जानते हैं 28 जुलाई से 03 अगस्त  २०२४  के बी

Aparajita Strotram ke fayde aur lyrics

अपराजिता स्त्रोत्रम के फायदे, lyrics of aparajita strotram, कैसे पाठ करें, किनके लिए फायदेमंद है अपराजिता स्त्रोत का पाठ ?, जानिए हिंदी अर्थ |

जीवन में अगर सफलता प्राप्त करना है तो सिर्फ मेहनत और भाग्य का ही साथ हमे नहीं चाहिये अपितु देवी-देवता, पितृ गण आदि का आशीर्वाद भी बहुत जरुरी होता है | हमे जीवन में हर कदम  पर नै चुनौतियों का सामना करन पड़ता है और इसी कारण सिर्फ मेहनत के बल पे आगे बढ़ना संभव नहीं है | दिव्य शक्तियों का आशीर्वाद अगर हमे मिल जाए तो सफलता प्राप्त करने की गती बढ़ जाती है | 

देविक शक्तियों के आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अनेक उपाय है उनमे से एक शक्तिशाली उपाय है अपराजिता स्त्रोतम का पाठ | जो भी भक्त इसका पाठ करते हैं नित्य उनके लिए जीवन में सबकुछ सुलभ हो जाता है | हर क्षेत्र में विजय निश्चित हो जाती है वो भले ही राजनीति हो, कला जगत हो, नौकरी हो, व्यापार हो, युद्ध हो या अन्य कुछ | 

अपराजिता का मतलब होता है जो कभी पराजित नहीं होता। 

अपराजिता स्त्रोत्रम के फायदे, lyrics of aparajita strotram, कैसे पाठ करें, किनके लिए फायदेमंद है अपराजिता स्त्रोत का पाठ ?, जानिए हिंदी अर्थ |
Aparajita Strotram ke fayde aur lyrics

आइये जानते हैं अपराजिता स्त्रोत्रम के चमत्कारी फायदों को:

  1. अगर आपको लगता है की आपके ऊपर किसी ने कुछ तंत्र प्रयोग किया है तो ऐसे में अपराजिता स्त्रोत का पाठ नित्य सुनना चाहिए और करना भी चाहिए |
  2. अगर शत्रु बहुत परेशान कर रहे हो तो ऐसे में aparajita strotram का पाठ बहुत फादेमंद होता है |
  3. अगर काले जादू के प्रभाव से जीवन अस्त व्यस्त हो रहा हो तो अपराजिता स्त्रोत्रम का पाठ बहुत लाभ देता है |
  4. अगर आपको लगता है की किसी ने आपके प्रिय के ऊपर वशीकरण का प्रयोग किया है तो उससे भी बचा लेता है ये शक्तिशाली पाठ |
  5. अगर आपको लगता है की किसी ने मारण प्रयोग किया है, या मुठ करनी की है, स्तम्भन प्रयोग किया है जिससे जीवन बर्बाद हो रहा हो तो ऐसे में भी aparajita strotram का पाठ आपको बचा लेगा |
  6. कुंडली में अगर अनेक दोष मौजूद हो और जीवन में लगतार असफलता मिल रही हो तो अपराजिता स्त्रोत्रम का पाठ करें निश्चित ही सफलता मिलने लगेगी |
  7. अगर रोग पीछा नहीं छोड़ रहा हो तो माँ अपराजिता की आराधना से स्वास्थ्य की प्राप्ति होगी |
  8. तो जीवन में कैसी भी मुसीबत हो अगर रास्ता नहीं मिल रहा है तो महामाया अपराजिता की पूजन आराधना करनी चाहिए जिनमे सभी शक्तियों का वास है |
  9. अगर बंधन दोष हो तो भी इस दिव्य स्त्रोत्रम का पाठ बचा लेता है |

अपराजिता स्तोत्रं | Aparajita Stotram| Aparajita Stotram lyrics: 

।।अथ श्री अपराजिता स्तोत्र ।।

ॐ नमोऽपराजितायै ।।

ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः ।

गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि ।

श्री लक्ष्मीनृसिंहो देवता ।

ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् ।

हुं शक्तिः ।

सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः ।।


ध्यान:

ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् ।

शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ॥ १॥

शङ्खचक्रधरां देवी वैष्ण्वीमपराजिताम्

बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम् ॥ २॥

नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः ॥ ३॥


मार्ककण्डेय उवाच –

शृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् ।

असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ॥ ४॥

ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासुदेवाय,

नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षाय, क्षीरोदार्णवशायिने,

शेषभोगपर्य्यङ्काय, गरुडवाहनाय, अमोघाय

अजाय अजिताय पीतवाससे,

ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध,

हयग्रिव, मत्स्य कूर्म्म, वाराह नृसिंह, अच्युत,

वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर राम राम राम ।

वरद, वरद, वरदो भव, नमोऽस्तु ते, नमोऽस्तुते, स्वाहा,

ॐ असुर-दैत्य-यक्ष-राक्षस-भूत-प्रेत-पिशाच-कूष्माण्ड-

सिद्ध-योगिनी-डाकिनी-शाकिनी-स्कन्दग्रहान्

उपग्रहान्नक्षत्रग्रहांश्चान्या हन हन पच पच

मथ मथ विध्वंसय विध्वंसय विद्रावय विद्रावय

चूर्णय चूर्णय शङ्खेन चक्रेण वज्रेण शूलेन

गदया मुसलेन हलेन भस्मीकुरु कुरु स्वाहा ।

ॐ सहस्रबाहो सहस्रप्रहरणायुध,

जय जय, विजय विजय, अजित, अमित,

अपराजित, अप्रतिहत, सहस्रनेत्र,

ज्वल ज्वल, प्रज्वल प्रज्वल,

विश्वरूप बहुरूप, मधुसूदन, महावराह,

महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण,

पद्मनाभ, गोविन्द, दामोदर, हृषीकेश,

केशव, सर्वासुरोत्सादन, सर्वभूतवशङ्कर,

सर्वदुःस्वप्नप्रभेदन, सर्वयन्त्रप्रभञ्जन,

सर्वनागविमर्दन, सर्वदेवमहेश्वर,

सर्वबन्धविमोक्षण,सर्वाहितप्रमर्दन,

सर्वज्वरप्रणाशन, सर्वग्रहनिवारण,

सर्वपापप्रशमन, जनार्दन, नमोऽस्तुते स्वाहा ।



विष्णोरियमनुप्रोक्ता सर्वकामफलप्रदा ।

सर्वसौभाग्यजननी सर्वभीतिविनाशिनी ॥ ५॥


सर्वैंश्च पठितां सिद्धैर्विष्णोः परमवल्लभा ।

नानया सदृशं किङ्चिद्दुष्टानां नाशनं परम् ॥ ६॥


विद्या रहस्या कथिता वैष्णव्येषापराजिता ।

पठनीया प्रशस्ता वा साक्षात्सत्त्वगुणाश्रया ॥ ७॥


ॐ शुक्लाम्बरधरं विष्णुं शशिवर्णं चतुर्भुजम् ।

प्रसन्नवदनं ध्यायेत्सर्वविघ्नोपशान्तये ॥ ८॥


अथातः सम्प्रवक्ष्यामि ह्यभयामपराजिताम् ।

या शक्तिर्मामकी वत्स रजोगुणमयी मता ॥ ९॥

अपराजिता स्त्रोत्रम के फायदे, lyrics of aparajita strotram, कैसे पाठ करें, किनके लिए फायदेमंद है अपराजिता स्त्रोत का पाठ ?, जानिए हिंदी अर्थ |

सर्वसत्त्वमयी साक्षात्सर्वमन्त्रमयी च या ।

या स्मृता पूजिता जप्ता न्यस्ता कर्मणि योजिता ।

सर्वकामदुधा वत्स शृणुष्वैतां ब्रवीमि ते ॥ १०॥

य इमामपराजितां परमवैष्णवीमप्रतिहतां

पठति सिद्धां स्मरति सिद्धां महाविद्यां

जपति पठति शृणोति स्मरति धारयति कीर्तयति वा

न तस्याग्निवायुवज्रोपलाशनिवर्षभयं,

न समुद्रभयं, न ग्रहभयं, न चौरभयं,

न शत्रुभयं, न शापभयं वा भवेत् ।

क्वचिद्रात्र्यन्धकारस्त्रीराजकुलविद्वेषि-विषगरगरदवशीकरण-

विद्वेष्णोच्चाटनवधबन्धनभयं वा न भवेत् ।

एतैर्मन्त्रैरुदाहृतैः सिद्धैः संसिद्धपूजितैः ।

ॐ नमोऽस्तुते ।

अभये, अनघे, अजिते, अमिते, अमृते, अपरे,

अपराजिते, पठति, सिद्धे जयति सिद्धे,

स्मरति सिद्धे, एकोनाशीतितमे, एकाकिनि, निश्चेतसि,

सुद्रुमे, सुगन्धे, एकान्नशे, उमे ध्रुवे, अरुन्धति,

गायत्रि, सावित्रि, जातवेदसि, मानस्तोके, सरस्वति,

धरणि, धारणि, सौदामनि, अदिति, दिति, विनते,

गौरि, गान्धारि, मातङ्गी कृष्णे, यशोदे, सत्यवादिनि,

ब्रह्मवादिनि, कालि, कपालिनि, करालनेत्रे, भद्रे, निद्रे,

सत्योपयाचनकरि, स्थलगतं जलगतं अन्तरिक्षगतं

वा मां रक्ष सर्वोपद्रवेभ्यः स्वाहा ।

अपराजिता स्त्रोत्रम के फायदे, lyrics of aparajita strotram, कैसे पाठ करें, किनके लिए फायदेमंद है अपराजिता स्त्रोत का पाठ ?, जानिए हिंदी अर्थ |

यस्याः प्रणश्यते पुष्पं गर्भो वा पतते यदि ।

म्रियते बालको यस्याः काकवन्ध्या च या भवेत् ॥ ११॥


धारयेद्या इमां विद्यामेतैर्दोषैर्न लिप्यते ।

गर्भिणी जीववत्सा स्यात्पुत्रिणी स्यान्न संशयः ॥ १२॥


भूर्जपत्रे त्विमां विद्यां लिखित्वा गन्धचन्दनैः ।

एतैर्दोषैर्न लिप्येत सुभगा पुत्रिणी भवेत् ॥ १३॥


रणे राजकुले द्यूते नित्यं तस्य जयो भवेत् ।

शस्त्रं वारयते ह्योषा समरे काण्डदारुणे ॥ १४॥


गुल्मशूलाक्षिरोगाणां क्षिप्रं नाश्यति च व्यथाम् ॥

शिरोरोगज्वराणां न नाशिनी सर्वदेहिनाम् ॥ १५॥


इत्येषा कथिता विध्या अभयाख्याऽपराजिता ।

एतस्याः स्मृतिमात्रेण भयं क्वापि न जायते ॥ १६॥


नोपसर्गा न रोगाश्च न योधा नापि तस्कराः ।

न राजानो न सर्पाश्च न द्वेष्टारो न शत्रवः ॥१७॥


यक्षराक्षसवेताला न शाकिन्यो न च ग्रहाः ।

अग्नेर्भयं न वाताच्व न स्मुद्रान्न वै विषात् ॥ १८॥


कार्मणं वा शत्रुकृतं वशीकरणमेव च ।

उच्चाटनं स्तम्भनं च विद्वेषणमथापि वा ॥ १९॥


न किञ्चित्प्रभवेत्तत्र यत्रैषा वर्ततेऽभया ।

पठेद् वा यदि वा चित्रे पुस्तके वा मुखेऽथवा ॥ २०॥


हृदि वा द्वारदेशे वा वर्तते ह्यभयः पुमान् ।

हृदये विन्यसेदेतां ध्यायेद्देवीं चतुर्भुजाम् ॥ २१॥

अपराजिता स्त्रोत्रम के फायदे, lyrics of aparajita strotram, कैसे पाठ करें, किनके लिए फायदेमंद है अपराजिता स्त्रोत का पाठ ?, जानिए हिंदी अर्थ |

रक्तमाल्याम्बरधरां पद्मरागसमप्रभाम् ।

पाशाङ्कुशाभयवरैरलङ्कृतसुविग्रहाम् ॥ २२॥


साधकेभ्यः प्रयच्छन्तीं मन्त्रवर्णामृतान्यपि ।

नातः परतरं किञ्चिद्वशीकरणमनुत्तमम् ॥ २३॥


रक्षणं पावनं चापि नात्र कार्या विचारणा ।

प्रातः कुमारिकाः पूज्याः खाद्यैराभरणैरपि ।

तदिदं वाचनीयं स्यात्तत्प्रीत्या प्रीयते तु माम् ॥ २४॥


ॐ अथातः सम्प्रवक्ष्यामि विद्यामपि महाबलाम् ।

सर्वदुष्टप्रशमनीं सर्वशत्रुक्षयङ्करीम् ॥ २५॥

दारिद्र्यदुःखशमनीं दौर्भाग्यव्याधिनाशिनीम् ।

भूतप्रेतपिशाचानां यक्षगन्धर्वरक्षसाम् ॥ २६॥

डाकिनी शाकिनी-स्कन्द-कूष्माण्डानां च नाशिनीम् ।

महारौद्रिं महाशक्तिं सद्यः प्रत्ययकारिणीम् ॥ २७॥


गोपनीयं प्रयत्नेन सर्वस्वं पार्वतीपतेः ।

तामहं ते प्रवक्ष्यामि सावधानमनाः शृणु ॥ २८॥


एकान्हिकं द्व्यन्हिकं च चातुर्थिकार्द्धमासिकम् ।

द्वैमासिकं त्रैमासिकं तथा चातुर्मासिकम् ॥ २९॥


 पाञ्चमासिकं षाङ्मासिकं वातिक पैत्तिकज्वरम् ।

श्लैष्पिकं सात्रिपातिकं तथैव सततज्वरम् ॥ ३०॥

अपराजिता स्त्रोत्रम के फायदे, lyrics of aparajita strotram, कैसे पाठ करें, किनके लिए फायदेमंद है अपराजिता स्त्रोत का पाठ ?, जानिए हिंदी अर्थ |

मौहूर्तिकं पैत्तिकं शीतज्वरं विषमज्वरं ।

द्वहिंकं त्रयहिन्कं चैव ज्वर्मेकाहिकं तथा ।

क्षिप्रं नाशयेते नित्यं स्मरणाद्पराजिता। । ३१। ।


ॐ हीं हन हन कालि शर शर गौरि धम धम

विद्धे आले ताले माले गन्थे बन्धे पच पच विद्दे

नाशाय नाशाय पापं हर हर संहारय वा दु:स्वप्नविनाशनी कमलस्थिते

विनायकमात: रजनि संध्ये दुन्दुभिनादे मानसवेगे शड़्खिनी चक्रिणी

गदिनी वज्रिणी शूलिनी अपमृत्युविनाशिनी विश्रेश्वरी द्रविणी

द्राविणी केश्वद्यिते पशुपतिसहिते दुन्दुभिदमनी दुम्मदमनी शबरि

किराती मातंगी ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ।


ये मां द्विषन्ति प्रत्यक्षं परोक्षं वा तान सर्वान दम दम मर्दय मर्दय तापय तापय गोपय गोपय पातय पातय शोषय शोषय उत्सादय उत्सादय ब्रम्हाणी ब्रम्हाणी माहेश्वरी कौमारि वाराहि नारसिंही एंद्री चामुंडे महालक्ष्मी वैनायिकी औपेंद्री आग्नेयी चंडी नैॠति वायव्ये सौम्ये ऐशानि ऊध्र्व्मधोरक्ष प्रचंद्विद्दे इन्द्रोपेन्द्रभगिनि ।

ॐ नमो देवी  जये विजये शान्ति स्वस्ति तुष्ठी पुष्ठी विवर्द्धिनी कामांकुशे कामदुद्दे सर्वकामवर्प्रदे सर्वभूतेषु माँ प्रियं कुरु कुरु स्वाहा ।

आकर्षणी आवेशनि ज्वालामालिनी रमणी रामणि धरणी धारणी तपनि तापिनी मदनी मादिनी शोषणी सम्मोहिनी।

नीलपताके महानीले महागौरि महाश्रिये ।

महाचान्द्री महासौरी महामायुरी आदित्यरश्मि जाहृवि ।


यमघंटे किणी किणी चिन्तामणि ।

सुगन्धे सुर्भे सुरासुरोत्प्त्रे सर्वकाम्दुद्दे ।

यद्द्था मनिषीतं कार्यं तन्मम सिद्धतु स्वाहा ।

ॐ स्वाहा ।  ॐ भू: स्वाहा ।  ॐ  भुव: स्वाहा ।  ॐ स्व: स्वाहा ।

ॐ मह: स्वाहा ।  ॐ जन: स्वाहा ।  ॐ तप: स्वाहा ।  ॐ सत्यं स्वाहा ।  ॐ भूभुर्व: स्वाहा ।

यत एवागतं पापं तत्रैव प्रतिगच्छ्तु स्वाहेत्यों ।

अमोघैषा महाविद्दा वैष्णवी चापराजिता । । ३२। ।


स्वयं विश्नुप्रणीता च सिद्धेयं पाठत: सदा ।

एषा महाबला नाम कथिता तेऽपराजित । । ३३। ।


नानया सदृशी रक्षा त्रिषु लोकेषु विद्दते ।

तमोगुणमयी साक्षद्रोद्री शक्तिरियं मता । । ३४। ।



कृतान्तोऽपि यतोभीत: पाद्मुले व्यवस्थित: ।

मूलाधारे न्यसेदेतां रात्रावेन च संस्मरेत । । ३५। ।


नीलजीतमूतसंड़्काशां तडित्कपिलकेशिकाम् ।

उद्ददादित्यसंकाशां नेत्रत्रयविराजिताम् । । ३६। ।


शक्तिं त्रिशूलं शड़्खं चपानपात्रं च बिभ्रतीं ।

व्याघ्र्चार्म्परिधानां किड़्किणीजालमंडितं । । ३७। ।


धावंतीं गगंस्यांत: पादुकाहितपादकां ।

दंष्टाकरालवदनां व्यालकुण्डलभूषितां । । ३८। ।


व्यात्वक्त्रां ललजिहृां भुकुटिकुटिलालकां ।

स्वभक्तद्वेषिणां रक्तं पिबन्तीं पान्पात्रत: । । ३९। ।


सप्तधातून शोषयन्तीं क्रूरदृष्टया विलोकनात् ।

त्रिशुलेन च तज्जिहृां कीलयंतीं मुहुमुर्हु: । । ४०। ।


पाशेन बद्धा तं साधमानवंतीं तन्दिके ।

अर्द्धरात्रस्य समये देवीं ध्यायेंमहबलां । । ४१। ।

अपराजिता स्त्रोत्रम के फायदे, lyrics of aparajita strotram, कैसे पाठ करें, किनके लिए फायदेमंद है अपराजिता स्त्रोत का पाठ ?, जानिए हिंदी अर्थ |

यस्य यस्य वदेन्नाम जपेन्मंत्रं निशांतके ।

तस्य तस्य तथावस्थां कुरुते सापियोगिनी । । ४२। ।


ॐ बले महाबले असिद्धसाधनी स्वाहेति ।

अमोघां पठति सिद्धां श्रीवैष्णवीं । ।  ४३। ।


श्रीमद्पाराजिताविद्दां    ध्यायते ।

दु:स्वप्ने दुरारिष्टे च दुर्निमिते तथैव च ।

व्यवहारे भवेत्सिद्धि: पठेद्विघ्नोपशान्त्ये । । ४४। ।


यदत्र पाठे जगदम्बिके मया, विसर्गबिन्द्धऽक्षरहीमीड़ितं ।

तदस्तु सम्पूर्णतमं प्रयान्तु मे, सड़्कल्पसिद्धिस्तु सदैव जायतां । । ४५। ।


ॐ तव तत्वं न जानामि किदृशासी महेश्वरी ।

यादृशासी महादेवी ताद्रिशायै नमो नम: । । ४६। ।

||ॐ इति अपराजिता स्त्रोत्रम सम्पूर्णं || 

अपराजिता स्त्रोत्रम की पाठ विधि :

वैसे तो जब भी जरुरत महसूस हो तभी से पाठ शुरू कर सकते हैं परन्तु कुछ विशेष महुरतो में अगर पाठ शुरू करें तो लाभ शीघ्र मिलता है जैसे –

  1. विजयादशमी से इसका पाठ शुरू करना बहुत ही अच्छा माना जाता है |
  2. आप सर्वार्ध सिद्धि योग से भी अपराजिता स्त्रोत का पाठ शुरू कर सकते हैं |
  3. शिव रात्री, होली की रात्री, दिवाली की रात्री, जन्माष्टमी जैसे महायोग में भी आप इसका पाठ शुरू कर सकते हैं |
  4. अगर परेशानी ज्यादा हो तो 3 काल में इसका जप करना चाहिए अर्थात सुबह दोपहर और शाम को |
  5. सिद्धि प्राप्त करने के लिए रात्री 10 बजे बाद पाठ करें तो ज्यादा अच्छा है | 
अपराजिता स्त्रोत्रम के फायदे, lyrics of aparajita strotram, कैसे पाठ करें, किनके लिए फायदेमंद है अपराजिता स्त्रोत का पाठ ?, जानिए हिंदी अर्थ |

अपराजिता स्त्रोत्रम का अर्थ/Meaning of aparajita strotram in hindi :

ॐ अपराजिता देवी को नमस्कार। इस वैष्णवी अपराजिता महाविद्दा के वामदेव, ब्रहस्पति, मारकंडये ऋषि है गायत्री उष्णिग् अनुष्टुप बृहति छन्द, लक्ष्मी नरसिंह देवता, क्लीं बीजम्, हुं शक्ति, सकलकामना सिद्धि के लिए अपराजिता विद्दा मंत्रपाठ में विनियोग है।


नीलकमलदल के समान, श्यामल रंग वाली, भुजंगो के आभरण से युक्त, शुद्धस्फ़टिक के समान उज्जवल तथा कोटि चन्द्र के प्रकाश के समान मुख वाली, शंख-चक्र धारण करने वाली, बालचंद्र मस्तक पर धारण करने वाली, वैष्णवी अपराजिता देवी को नमस्कार करके महान् तपस्वी मारकण्डेय ऋषि ने इस स्तोत्र का पाठ आरम्भ किया । । १-३। ।  

मारकण्डेय ऋषि ने कहा- हे मुनियो।  सिद्धि देने वाली, असिद्धिसाधिका वैष्णवी अपराजिता देवी के इस स्तोत्र को श्रवण करो । । ४। । 

ॐ नारायण भगवान् को नमस्कार, वासुदेव भगवान् को नमस्कार, अनंत्भागवान को नमस्कार, जो सहस्त्र सिर वाले क्षीरसागर में  शयन करने वाले, शेषनाग के शैया में शयन करने वाले, गरुण वाहन वाले, अमोघ, अजन्मा, अजित तथा पीताम्बर धारण करने वाले है।


ॐ हे वासुदेव, संकर्षण प्रद्दुम्न अनिरुद्ध, हयग्रिव, मतस्य, कुर्म, वाराह,नृसिंह, अच्युत,वामन, त्रिविक्रम, श्रीधर, राम, बलराम, परशुराम, हे वरदायक, आप मेरे लिए वर प्रदायक हों । आपको नमन हैं।


ॐ असुर, दैत्य, यक्ष, राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाच, कुष्मांड, सिद्ध्योगिनी, डाकिनी, शाकिनी, स्कंद्ग्रह, उपग्रह, नक्षत्र्ग्रह तथा अन्य ग्रहों को मारो-मारो, पाचन करो- पाचन करो ।  मंथन करो- मंथन करो, विध्वंस करो- विध्वंस करो, तोड़ दो- तोड़ दो, चूर्ण करो- चूर्ण करो ।  शंख, चक्र, वज्र, शूल, गदा, मूसल तथा हल से भस्म करो ।


ॐ हे सहस्त्रबाहू, हे सह्स्त्रप्रहार आयुध वाले, जय, विजय, अमित, अजित, अपराजित, अप्रतिहत, सहस्त्र्नेत्र जलाने वाले, प्रज्वलित करने वाले, विश्वरूप, बहुरूप, मधुसूदन, महावराह, महापुरुष, वैकुण्ठ, नारायण, पद्द्नाभ, गोविन्द,  दामोदर, हृषिकेश, केशव, सभी असुरों को उत्सादन करने वाले, हे सभी भूत-प्राणियों को वश में करने वाले, हे सभी दु:स्वप्न को नाश करने वाले, सभी यंत्रो को भेदने वाले, सभी नागों को विमर्दन करने वाले, सर्वदेवों को महादेव, सभी बंधनों को मोक्ष करने वाले, सभी अहितों को मर्दन करने वाले, सभी ज्वरों को नाश करने वाले, सभी ग्रहों का निवारण करने वाले, सभी पापों का प्रशमन करने वाले, हे जनार्दन आपको नमस्कार है ।

अपराजिता स्त्रोत्रम के फायदे, lyrics of aparajita strotram, कैसे पाठ करें, किनके लिए फायदेमंद है अपराजिता स्त्रोत का पाठ ?, जानिए हिंदी अर्थ |

ये भगवान् विष्णु की विद्दा सर्वकामना के देने वाली, सर्वसौभाग्य की जननी, सभी भय को नाश करें वाली है । । ५। ।  ये विष्णु की परम वल्लभा सिद्धों के द्वारा पठित है, इसके समान दुष्टों को नाश करने वाली कोई और विद्दा नही है। । ६। ।  ये वैष्णवी अपराजिता विद्दा साक्षात सत्वगुण, सम्निवत, सदा पढने योग्य तथा मार्ग प्रशस्ता है । । ७। ।


ॐ शुक्लवस्त्र धारण करने वाले, चंद्र्वर्ण वाले, चार भुजा वाले, प्रसन्न मुख वाले भगवान् का सर्व विघ्नों का विनाश करने हेतुध्यान करें ।  हे वत्स ।  अब मैं मेरी अभया अपराजिता के विषय में कहूँगा, जो रजोगुणमयी कही गई है । । १। ।  ये सत्व वाली सभी मन्त्रों वाली स्मृत, पूजित, जपित कर्मों में योजित, सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाली है ।  इसको ध्यान पूर्वक सुनो । । १०। ।


जो इस अपराजिता परम वैष्णवी, अप्रतिहता पढने से सिद्ध होने वाली, स्मरण करने से सिद्ध होने वाली, विद्दा को सुनें, पढ़ें, स्मरण करें, धारण करें, कीर्तन करें, इससे अग्नि , वायु , वज्र, पत्थर, खड़ग, वृष्टि आदि का भय नहीं होता ।  समुद्र भय, चौर भय, शत्रु भय, शाप भय भी नहीं होता।  रात्री में, अन्धकार में, राजकुल से विद्वेष करने वालों से, विष देने वालों से, वशीकरण आदि टोटका करने वालों से, विद्वेशिओं से, उच्चाटन करने वालों से, वध-भय, बंधन का भय आदि समस्त भय से इसका पाठ करने वाले सुरक्षित हो जाते हैं ।  इन मन्त्रों द्वारा कही गई, सिद्ध साधकों द्वारा पूजित यह अपराजिता शक्ति हैं ।


ॐ आप को नमस्कार है। भयरहित, पापरहित, परिमाण रहित, अमृत तत्व परिपूर्ण, अपरा, अपराजिता पढने से सिद्ध होने वाली, जप करने से सिद्ध होने वाली, स्मरण करने मात्र से सिद्धि से देने वाली, नवासिवाँ स्थान वाली, एकांत प्रिय, निश्चेता, सुदृमा, सुगंधा, एक अन्न लेने वाली, उमा, ध्रुवा, अरुन्धती, गायत्री, सावित्री, जातवेदा, मानस्तोका, सरस्वती, धरणी, धारण करने वाली, सौदामिनी, अदिती, दिती, विनता, गौरी, गांधारी, मातंगी, कृष्णा, यशोदा, सत्यवादिनी, ब्रम्हावादिनी, काली कपालिनी, कराल नेत्र वाली, भद्रा, निद्रा, सत्य की रक्षा करने वाली, जल में, स्थल में, अन्तरिक्ष में, सर्वत्र सभी प्रकार के उपद्रवों से रक्षा करों स्वाहा । 

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जिस स्त्री का गर्भ नष्ट हो जाता है, गिर जाता है, बालक मर जाता है अथवा वह काक बंध्या भी हो तो इस विद्दा को धारण करने से अर्थात जप करने से गर्भिणी जीववत्सा होगी इसमें कोई संशय नहीं है । । ११-१२। ।  इस मन्त्र को भोजपत्र में चन्दन से लिखकर धारण करने से सौभाग्यवती स्त्रियाँ पुत्रवती हो जाति है, इसमें कोई शंका नहीं है । । १३। ।  युद्ध में, राजकुल में, जुआ में, इस मन्त्र के प्रभाव से नित्य जय हो जाती है ।  भयंकर युद्ध में भी विद्दा अर्थ-शस्त्रों से रक्षा करती है । । २४। ।


गुल्म रोग, शूल रोग, आँख के रोग की व्यथा इससे शीघ्र नाश हो जाती है ।  ये विद्दा शिरोवेदना, ज्वर आदि नाश करने वाली है । । १५। ।   इस प्रकार की अभया ये अपराजिता विद्दा कही गई है, इसके स्मरण मात्र से कही भी भय नहीं होता । । १६। ।  सर्प भय, रोग भय, तरस्करों का भय, योद्धाओं का भय, राज भय, द्वेष करने वालों का भय और शत्रु भय नहीं होता है । । १७। ।  यक्ष, राक्षस, वेताल, शाकिनी, ग्रह, अग्नि, वायु, समुद्र,विष आदि से भय नहीं होता । । १८। ।  क्रिया से शत्रु द्वारा किये हुए वशीकरण हो, उच्चाटन स्तम्भ हो, विद्वेषण हो, इन सबका लेशमात्र भी प्रभाव नहीं होता । । १९। ।


जहाँ माँ अपराजिता का पाठ हो, यहाँ तक की यदि यह मुख में कंठस्थ हो, लिखित रूप में साथ हो,चित्र अर्थात यन्त्र रूप में लिखा हो तो भी भय-बाधाएं कुछ नहीं कर पाते । । २०। ।  यदि माँ अपराजिता के इस स्तोत्र को तथा चतुर्भुजा स्वरुप को साधक ह्रदय रूप में धारण करेगा तो वह बाहर भीतर सब प्रकार से भयरहित होकर शांत हो जाता है। । २१। । 


लाल पुष्प की माला धारण की हुई, कोमल कमलकान्ति के समान आभा वाली, पाश अंकुश तथा अभय मुद्राओं से समलड़्कृत सुन्दर स्वरुप वाली । । २२। ।  साधको को मन्त्र वर्ण रूप अमृत को देती हुई, माँ का ध्यान करें ।  इस विद्दा से बढ़कर कोई वशीकरण सिद्धि देने वाली विद्दा नहीं है । । २३। ।  न रक्षा करने वाली, न पवित्र, इसके समान कोई नहीं है, इस विषय म कोई चिन्तन करने की आव्य्शकता नहीं है ।  प्रात:काल में साधको माँ के कुमारी रूप की पूजन विधि खाद्द सामग्री से अनेक प्रकार के आभरणों से करनी चाहिए ।  कुमारी देवी के प्रसन्न होने से मेरी ( अपराजिता की ) प्रीति बढ़ जाती है । । २४। ।


ॐ अब मैं उस महान बलशालिनी विद्दा को कहूँगा, जो सभी दुष्ट दमन करने वाली, सभी शत्रु नाश करने वाली, दारिद्र्य दुःख को नाश करने वाली, दुर्भाग्य का नाश करने वाली, भूत, प्रेत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस का नाश करने वाली है । । २५-२६। ।  डाकिनी, शाकिनी, स्कन्द, कुष्मांड आदि का नाश करने वाली, महारौद्र रूपा, महाशक्ति शालिनी, तत्काल विशवास देने वाली है । । २७। ।  ये विद्दा अत्यन्त गोपनीय तथा पार्वती पति भगवान् भोलेनाथ की सर्वस्व है, इसलिए इसे गुप्त रखना चाहिए ।  ऐसी विद्दा तुम्हे कहता हु सावधान होकर सुनो । । २८। । 


एक, दो, चार, दिन या आधे महीने, एक महीने, दो महीने, तीन महीने, चार महीने, पाँच महीने, छह महीने तक चलने वाला वाट ज्वर, पित्त सम्बन्धी ज्वर अथवा कफ दोष, सन्निपत हो या मुहूर्त मात्र तक रहने वाला पित्त ज्वर, विष का ज्वर, विषम ज्वर, दो दिन वाला, तीन दिन वाला, एक दिन वाला अथवा अन्य कोई ज्वर हो  वे सब अपराजिता के स्मरण मात्र से शीघ्र नष्ट हो जाते है । ।  २९-३०-३१। ।

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ॐ हृीं हन हन काली शर शर, गौरी धम-धम, हे विद्दा स्वरुपा, हे आले ताले माले गंधे बंधे विद्दा को पचा दो पचा दो, नाश करो नाश करो, पाप हरण करो पाप हरण करो, संहार करो संहार करो, दु:स्वप्न विनाश करने वाली, कमल पुष्प में स्थित, विनायक मात रजनी संध्या स्वरुपा, दुन्दुभी नाद करने वाली, मानस वेग वाली, शंखिनी, चक्रिणी, वज्रिणी, शूलिनी अपस्मृत्यु नाश करने वाली, विश्वेश्वरी द्रविडी द्राविडी द्रविणी द्राविणी केशव दयिते पशुपति सहिते, दुन्दुभी दमन करने वाली, दुर्मद दमन करने वाली, शबरी किराती मातड़्गी ॐ द्रं द्रं ज्रं ज्रं क्रं क्रं तुरु तुरु ॐ द्रं कुरु कुरु ।


जो प्रत्यक्ष या परोक्ष में मुझसे जलते है, उन सबका दमन करो- दमन करो, मर्दन करो – मर्दन करो, तापित करो तापित करो, छिपा दो छिपा दो, गिरा दो गिरा दो, शोषण करो शोषण करो, उत्सादित करो, उत्सादित करो, हे ब्रह्माणी, हे वैष्णवी, हे माहेश्वरी, कौमारी, वाराही, हे नृसिंह सम्बन्धिनी, ऐन्द्री, चामुंडा, महालक्ष्मी, हे विनायक सम्बन्धिनी, हे उपेन्द्र सम्बन्धिनी, हे अग्नि सम्बन्धिनी, हे चंडी, हे नैॠत्य सम्बन्धिनी, हे वायव्या, हे सौम्या, हे ईशान सम्बन्धिनी, हे प्रचण्डविद्दा वाली, हे इन्द्र तथा उपेन्द्र की भागिनी आप ऊपर तथा नीचे से सब प्रकार से रक्षा करें ।


ॐ जया विजया शान्ति स्वस्ति तुष्ठी पुष्ठी बढाने वाली देवी आपको नमस्कार है ।  दुष्टकामनाओं को अंकुश में करने वाली, शुभकामना  देने वाली, सभी कामनाओं को वरदान देने वाली, सब प्राणियों में मुझे प्रिय करो प्रिय करो स्वाहा ।


आकर्षण करने वाली, आवेशित करने वाली, ज्वाला माला वाली, रमणी, रमाने वाली, पृथ्वी स्वरुपा, धारण करने वाली, तप करने वाली, तपाने वाली, मदन रूपा, मद देने वाली, शोषण करने वाली, सम्मोहन करने वाली, नील्ध्वज वाली, महानील स्वरुपा, महागौरी, महाश्रिया, महाचान्द्री, महासौरी, महामायुरी, आदित्य रश्मि, जाहृवी। यमघंटा किणी किणी ध्वनीवाली, चिन्तामणि, सुगंध वाली, सुरभा, सुर, असुर उत्पन्न करने वाली, सब प्रकार की कामनाये पूर्ति करने वाली, जैसा मेरा मन वांछित कार्य है वह सम्पन्न हो जाये स्वाहा ।


ॐ स्वाहा ।  ॐ भू: स्वाहा ।  ॐ भुव: स्वाहा ।  ॐ स्व: स्वाहा ।  ॐ मह: स्वाहा ।  ॐ जन: स्वाहा ।  ॐ तप: स्वाहा ।  ॐ सत्यम स्वाहा ।  ॐ भूभुर्व: स्व: स्वाहा ।


जो पाप जहा से आया है , वाही लौट जाये स्वाहा ।  ॐ यह महा वैष्णवी अपराजिता महाविद्दा अमोघ फलदायी है । । ३२। ।  ये महाविद्दा महाशक्तिशाली है अत: इसे अपराजिता अर्थात् किसी प्रकार की अन्य विद्द्य से पराजित ना होने वाली कहा गया है ।  इसको स्वयं विष्णु ने निर्मित किया है इसका सदा पाठ करने से सिद्दी प्राप्त होती है । । ३३। ।  इस विद्दा के समान तीनो लोको में कोई रक्षा करने में समर्थ दूसरी विद्दा नहीं है ।  ये तमोगुण स्वरूपा साक्षात रौद्र्शक्ति मानी गई है । । ३४। ।  इस विद्दा के प्रभाव से यमराज भी डरकर चरणों में बैठ जाते है ।  इस विद्दा की मूलाधार स्थापित करना चाहिए तथा राटा को स्मरण करना चाहिए। ।  ३५। ।  नीले मेघ के समान चमकती बिजली जैसे केश वाली, चमकते सूर्य के समान तीन नेत्र वाली माँ मेरे प्रत्यक्ष विराजमान है । । ३६। । (Aparajita Stotra)


शक्ति, त्रिशूल, शंख, पानपात्र को धारण की हुई, व्याघ्र चरम धारण की हुई , किंकिणियों से सुशोभित, मण्डप में विराजमान, गगनमंडल के भीतरी भाग में धावन करती हुई, पादुकाहित चरण वाली, भयंकर दांत तथा मुख वाली, कुण्डल युक्त सर्प के आभरणों से सुसज्जित, खुले मुख वाली, जिहृा को बाहर निकाली हुई, टेड़ी भौंहें वाली, अपने भक्त से शत्रुता करने वालों का रक्त पानपात्र से पीने वाली, क्रूर दृष्टि से देखने पर सात प्रकार के धातु शोषण करने वाली, बारम्बार त्रिशूल से शत्रु के जिहृा को कीलित कर देने वाली, पाश से बाँधकर उसे निकट लाने वाली, ऐसी महाशक्ति शाली माँ को आधी रात के समय में ध्यान करे। । ३७-४१। ।  फिर रात के तीसरे प्रहर में जिस जिसका नाम लेकर जिस हेतु जप किया जाये उस- उस को वैसा स्वरुप बना देती है ये योगिनी माता । । ४२।। 

अपराजिता स्त्रोत्रम के फायदे, lyrics of aparajita strotram, कैसे पाठ करें, किनके लिए फायदेमंद है अपराजिता स्त्रोत का पाठ ?, जानिए हिंदी अर्थ |

ॐ बला महाबला असिद्द्साधनी स्वाहा इति ।  इस अमोघ सिद्ध श्रीवैष्णवी विद्दा, श्रीमद अपराजिता को दु:स्वप्न, दुरारिष्ट, आपदा की अवस्था में अथवा किसी कार्य के आरम्भ में ध्यान करें तो इससे विघ्न बाधाये शांत हो जायेंगी ।  सिद्धि प्राप्त होगी । । ४३-४४। । हे जगज्जननी माँ इस स्तोत्र पाठ में मेरे द्वारा यदि विसर्ग, अनुस्वार, अक्षर, पाठ छोड़ गया हो तो भी माँ आपसे क्षमा प्रार्थना करता हुँ की मेरे पाठ का पूर्ण फल मिले, मेरे संकल्प की अवश्य सिद्धि हो अर्थात किसी भी प्रकार की उच्चारण की भूल को क्षमा करें । । ४५। ।


हे माँ मैं आपके वास्तविक स्वरुप को नही जानता आप कैसी है ये भी नहीं जानता, बस मुझे इतना पता है की आपका रूप जैसा भी हो मैं उसी रूप को पुजरा हुँ ।  आपके सभी रूपों को नमस्कार हैं अर्थात हे अपराजिता माँ आपका स्वरुप अपरम्पार है, उसे जाना नहीं जा सकता, आपके विलक्षण स्वरुप को हमारा शत शत नमन है । । ४६।

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