Shree Parmeshwar Stutih(Devdaruvanasth Krutam) Lyrics, Hindi Meaning of Shree Parmeshwar Stutih, शिव स्तुति.
“श्री परमेश्वर स्तुतिः (देवदारुवनस्थ मुनि कृतम्)” एक अत्यंत पवित्र और आध्यात्मिक स्तोत्र है, जिसकी रचना देवदारु वन में तपस्या करने वाले मुनि ने भगवान शिव की आराधना स्वरूप की थी। यह स्तुति भगवान परमेश्वर के साक्षात् स्वरूप की भक्ति, ज्ञान और तप की भावना को प्रकट करती है। इसमें शिव के निराकार और साकार दोनों रूपों की प्रशंसा की गई है, जो यह दर्शाती है कि वे सम्पूर्ण सृष्टि के मूल कारण, पालक और संहारकर्ता हैं। इस स्तुति का पाठ साधक के मन को शुद्ध करता है, अहंकार को दूर कर आत्मज्ञान और मोक्ष की ओर अग्रसर करता है। देवदारु वन, जहाँ यह स्तुति उत्पन्न हुई, केवल एक भौगोलिक स्थान नहीं बल्कि तप, वैराग्य और अंतर्मन की शांति का प्रतीक है। यह स्तुति भारतीय आध्यात्मिक परंपरा और शिवभक्ति की अखंड धारा का प्रतिनिधित्व करती है। “श्री परमेश्वर स्तुतिः” का श्रवण या पाठ मन को शांति, शक्ति और दिव्यता से भर देता है, और भक्त को परमात्मा के साथ एकत्व का अनुभव कराता है। इस प्रकार, यह स्तोत्र केवल एक प्रार्थना नहीं बल्कि शिवतत्व के अनुभव की साधना का मार्ग है। इसका वर्णन श्री लिंग महापुराण में मिलता है.
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| Shree Parmeshwar Stutih(Devdaruvanasth Krutam) Lyrics with Hindi Meaning |
Lyrics of श्री परमेश्वर स्तुतिः (देवदारुवनस्थ मुनि कृतम्) -
ऋषय ऊचुः ।
नमो दिग्वाससे नित्यं कृतान्ताय त्रिशूलिने ।
विकटाय करालाय करालवदनाय च ॥ १ ॥
अरूपाय सुरूपाय विश्वरूपाय ते नमः ।
कटङ्कटाय रुद्राय स्वाहाकाराय वै नमः ॥ २ ॥
सर्वप्रणतदेहाय स्वयं च प्रणतात्मने ।
नित्यं नीलशिखण्डाय श्रीकण्ठाय नमो नमः ॥ ३ ॥
नीलकण्ठाय देवाय चिताभस्माङ्गधारिणे ।
त्वं ब्रह्मा सर्वदेवानां रुद्राणां नीललोहितः ॥ ४ ॥
आत्मा च सर्वभूतानां साङ्ख्यैः पुरुष उच्यते ।
पर्वतानां महामेरुर्नक्षत्राणां च चन्द्रमाः ॥ ५ ॥
ऋषीणां च वसिष्ठस्त्वं देवानां वासवस्तथा ।
ओङ्कारः सर्ववेदानां श्रेष्ठं साम च सामसु ॥ ६ ॥
आरण्यानां पशूनां च सिंहस्त्वं परमेश्वरः ।
ग्राम्याणामृषभश्चासि भगवान् लोकपूजितः ॥ ७ ॥
सर्वथा वर्तमानोऽपि यो यो भावो भविष्यति ।
त्वामेव तत्र पश्यामो ब्रह्मणा कथितं यथा ॥ ८ ॥
कामः क्रोधश्च लोभश्च विषादो मद एव च ।
एतदिच्छामहे बोद्धुं प्रसीद परमेश्वर ॥ ९ ॥
महासंहरणे प्राप्ते त्वया देव कृतात्मना ।
करं ललाटे संविध्य वह्निरुत्पादितस्त्वया ॥ १० ॥
तेनाग्निना तदा लोका अर्चिर्भिः सर्वतो वृताः ।
तस्मादग्निसमा ह्येते बहवो विकृताग्नयः ॥ ११ ॥
कामः क्रोधश्च लोभश्च मोहो दम्भ उपद्रवः ।
यानि चान्यानि भूतानि स्थावराणि चराणि च ॥ १२ ॥
दह्यं ते प्राणिनस्ते तु त्वत्समुत्थेन वह्निना ।
अस्माकं दह्यमानानां त्राता भव सुरेश्वर ॥ १३ ॥
त्वं च लोकहितार्थाय भूतानि परिषिञ्चसि ।
महेश्वर महाभाग प्रभो शुभनिरीक्षक ॥ १४ ॥
आज्ञापय वयं नाथ कर्तारो वचनं तव ।
भूतकोटिसहस्रेषु रूपकोटिशतेषु च ॥ १५ ॥
अन्तं गन्तुं न शक्ताः स्म देवदेव नमोऽस्तु ते ॥ १६ ॥
| इति श्रीलिङ्गमहापुराणे पूर्वभागे द्वात्रिंशोऽध्याये देवदारुवनस्थ मुनिकृत परमेश्वर स्तुतिः सम्पूर्णं |
Hindi Meaning of "श्री परमेश्वर स्तुतिः (देवदारुवनस्थ मुनि कृतम्)” :
- हे दिगम्बर (दिशाओं को वस्त्र मानने वाले), मृत्यु के देवता, त्रिशूलधारी, विकट और करालमुख परमेश्वर! आपको नमन है।
- हे निराकार और सुंदर रूप वाले, विश्वरूप, भयानक रुद्र और स्वाहा-मंत्रस्वरूप शिव! आपको नमस्कार।
- जो सब भक्तों की रक्षा करते हैं और स्वयं विनम्र आत्मस्वरूप हैं — हे नीलजटा वाले, नीलकण्ठ शिव! आपको बार-बार प्रणाम।
- हे नीलकण्ठ देव! जो चिता की भस्म शरीर पर धारण करते हैं, आप ही देवताओं के ब्रह्मा और रुद्रों में नीललोहित हैं।
- आप सभी प्राणियों के आत्मा हैं, जिन्हें सांख्य मुनि ‘पुरुष’ कहते हैं। पर्वतों में आप मेरु हैं और नक्षत्रों में चन्द्रमा हैं।
- आप ऋषियों में वसिष्ठ, देवताओं में इन्द्र, वेदों में ओंकार और सामवेदों में श्रेष्ठ साम हैं।
- आप वन्य पशुओं में सिंह और ग्राम्य पशुओं में वृषभ हैं; आप ही लोकों द्वारा पूजित भगवान हैं।
- जो कुछ भी वर्तमान है या भविष्य में होगा, सबमें हम आपको ही देखते हैं — जैसा ब्रह्मा ने कहा है।
- हे परमेश्वर! कृपा करें और हमें बताइए कि काम, क्रोध, लोभ, शोक और मद का वास्तविक स्वरूप क्या है।
- हे देव! जब प्रलय का समय आया, तब आपने अपने ललाट से अग्नि उत्पन्न की।
- उस अग्नि से सारे लोक अग्निशिखाओं से घिर गए, और उसी से अनेक प्रकार की अग्नियाँ उत्पन्न हुईं।
- काम, क्रोध, लोभ, मोह, दम्भ आदि और सभी स्थावर-जंगम प्राणी उसी अग्नि से उत्पन्न हुए।
- वे सब प्राणी आपकी उत्पन्न अग्नि से जलते हैं; हम जो दग्ध हो रहे हैं, हमारे रक्षक बनिए हे सुरेश्वर।
- हे महेश्वर! आप लोककल्याण के लिए सभी प्राणियों को शीतलता देते हैं और सब पर शुभ दृष्टि रखते हैं।
- १५–१६. हे नाथ! हमें आदेश दें, हम आपके वचन का पालन करने वाले हैं। आपके अनंत रूपों का कोई अंत नहीं जान सकता — हे देवदेव, आपको नमस्कार।
| इति श्रीलिङ्गमहापुराणे पूर्वभागे द्वात्रिंशोऽध्याये देवदारुवनस्थ मुनिकृत परमेश्वर स्तुतिः सम्पूर्णं |
Shree Parmeshwar Stutih(Devdaruvanasth Krutam) Lyrics, Hindi Meaning of Shree Parmeshwar Stutih, शिव स्तुति.
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