Shree Sidhha Lakshmi Stotram With Hindi Meaning, क्या फायदे हैं सिद्ध लक्ष्मी स्त्रोत्रम पाठ के, धन प्राप्ति स्त्रोत, दर्द्रता निवारण प्रयोग, सफलता मंत्र,लक्ष्मी मंत्र.
"श्री सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र" धन की देवी माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का बहुत ही अच्छा साधन है. इसमें कहा गया है की जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करते हैं वे सभी प्रकार की आपदाओं से मुक्त हो जाते हैं।
अगर ब्राह्मण इसका पाठ करें तो दुःख, दरिद्रता, भय औ हजारों हजारों जन्मों के कष्टों से मुक्त हो जाते हैं।
जिसके पास लक्ष्मी नहीं है, उसे लक्ष्मी प्राप्त होती है; निःसंतान को श्रेष्ठ संतान मिलती है; धन, यश, आयु और अग्नि, चोर तथा भय से रक्षा मिलती है।
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Shree Sidhha Lakshmi Stotram With Hindi Meaning |
शाकिनी, भूत, वेताल, सभी प्रकार की बीमारियाँ, राजा के दरबार का भय, युद्ध और शत्रुओं के संकट — इन सबसे यह स्तोत्र रक्षा करता है।
सभा में, श्मशान में, जेल में, शत्रु के बंधन में या किसी भी बड़े भय में — यह स्तोत्र जपने से सिद्धि और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
इस में देवी लक्ष्मी से सदा घर में स्थायी रूप से निवास करने की प्रार्थना की गई है.
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Lyrics of Shree Sidhha Lakshmi Stotram:
ॐ अस्य श्रीसिद्धिलक्ष्मीस्तोत्रस्य । हिरण्यगर्भ ऋषिः । अनुष्टुप् छन्दः । सिद्धिलक्ष्मीर्देवता । मम समस्त दुःखक्लेशपीडादारिद्र्यविनाशार्थं । सर्वलक्ष्मीप्रसन्नकरणार्थं । महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताप्रीत्यर्थं च । सिद्धिलक्ष्मीस्तोत्रजपे विनियोगः ।।
।। अथ करन्यासः ।।
ॐ सिद्धिलक्ष्मी अङ्गुष्ठाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं विष्णुहृदये तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ क्लीं अमृतानन्दे मध्यमाभ्यां नमः ।
ॐ श्रीं दैत्यमालिनी अनामिकाभ्यां नमः ।
ॐ तं तेजःप्रकाशिनी कनिष्ठिकाभ्यां नमः ।
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ब्राह्मी वैष्णवी माहेश्वरी करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।।
।। हृदयादिन्यासः ।।
ॐ सिद्धिलक्ष्मी हृदयाय नमः ।
ॐ ह्रीं वैष्णवी शिरसे स्वाहा ।
ॐ क्लीं अमृतानन्दे शिखायै वौषट् ।
ॐ श्रीं दैत्यमालिनी कवचाय हुम् ।
ॐ तं तेजःप्रकाशिनी नेत्रद्वयाय वौषट् ।
ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं ब्राह्मीं वैष्णवीं फट् ।।
।। अथ ध्यानम् ।।
ब्राह्मीं च वैष्णवीं भद्रां षड्भुजां च चतुर्मुखाम् ।
त्रिनेत्रां च त्रिशूलां च पद्मचक्रगदाधराम् ।।१।।
पीताम्बरधरां देवीं नानालङ्कारभूषिताम् ।
तेजःपुञ्जधरां श्रेष्ठां ध्यायेद्बालकुमारिकाम् ।।२।।
।। अथ स्तोत्रम् ।।
ॐकारलक्ष्मीरूपेण विष्णोर्हृदयमव्ययम् ।
विष्णुमानन्दमध्यस्थं ह्रीङ्कारबीजरूपिणी ।।३।।
ॐ क्लीं अमृतानन्दभद्रे सद्य आनन्ददायिनी ।
ॐ श्रीं दैत्यभक्षरदां शक्तिमालिनी शत्रुमर्दिनी ।।४।।
तेजःप्रकाशिनी देवी वरदा शुभकारिणी ।
ब्राह्मी च वैष्णवी भद्रा कालिका रक्तशाम्भवी ।।५।।
आकारब्रह्मरूपेण ॐकारं विष्णुमव्ययम् ।
सिद्धिलक्ष्मि परालक्ष्मि लक्ष्यलक्ष्मि नमोऽस्तुते ।।६।।
सूर्यकोटिप्रतीकाशं चन्द्रकोटिसमप्रभम् ।
तन्मध्ये निकरे सूक्ष्मं ब्रह्मरूपव्यवस्थितम् ।।७।।
ॐकारपरमानन्दं क्रियते सुखसम्पदा ।
सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।।८।।
प्रथमे त्र्यम्बका गौरी द्वितीये वैष्णवी तथा ।
तृतीये कमला प्रोक्ता चतुर्थे सुरसुन्दरी ॥ ९॥
पञ्चमे विष्णुपत्नी च षष्ठे च वैष्णवी तथा ।
सप्तमे च वरारोहा अष्टमे वरदायिनी ।।१०।।
नवमे खड्गत्रिशूला दशमे देवदेवता ।
एकादशे सिद्धिलक्ष्मीर्द्वादशे ललितात्मिका ।।११।।
।। अथ स्तोत्र महात्म्यम् ।।
एतत्स्तोत्रं पठन्तस्त्वां स्तुवन्ति भुवि मानवाः ।
सर्वोपद्रवमुक्तास्ते नात्र कार्या विचारणा ।।१२।।
एकमासं द्विमासं वा त्रिमासं च चतुर्थकम् ।
पञ्चमासं च षण्मासं त्रिकालं यः पठेन्नरः ।।१३।।
ब्राह्मणाः क्लेशतो दुःखदरिद्रा भयपीडिताः ।
जन्मान्तरसहस्त्रेषु मुच्यन्ते सर्वक्लेशतः ।।१४।।
अलक्ष्मीर्लभते लक्ष्मीमपुत्रः पुत्रमुत्तमम् ।
धन्यं यशस्यमायुष्यं वह्निचौरभयेषु च ।।१५।।
शाकिनीभूतवेतालसर्वव्याधिनिपातके ।
राजद्वारे महाघोरे सङ्ग्रामे रिपुसङ्कटे ।।१६।।
सभास्थाने श्मशाने च कारागेहारिबन्धने ।
अशेषभयसम्प्राप्तौ सिद्धिलक्ष्मीं जपेन्नरः ।।१७।।
ईश्वरेण कृतं स्तोत्रं प्राणिनां हितकारणम! ।
स्तुवन्ति ब्राह्मणा नित्यं दारिद्र्यं न च वर्धते ।।१८।।
या श्रीः पद्मवने कदम्बशिखरे राजगृहे कुञ्जरे
श्वेते चाश्वयुते वृषे च युगले यज्ञे च यूपस्थिते ।
शङ्खे देवकुले नरेन्द्रभवनी गङ्गातटे गोकुले
सा श्रीस्तिष्ठतु सर्वदा मम गृहे भूयात्सदा निश्चला ।।१९।।
।। इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे ईश्वरविष्णुसंवादे दारिद्र्यनाशनं सिद्धिलक्ष्मीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।।
ॐ महालक्ष्मयै नमः
Hindi Meaning of Siddh Laxmi Strotram:
॥ अथ ध्यानम् ॥
- ब्राह्मी, वैष्णवी, भद्रा – ये देवी छह भुजाओं वाली, चार मुखों वाली, तीन नेत्रों वाली हैं और त्रिशूल, पद्म, चक्र व गदा धारण किए हुए हैं।
- देवी पीले वस्त्र धारण करती हैं, अनेक आभूषणों से सुसज्जित हैं, प्रकाश के पुंज जैसी तेजस्वी और श्रेष्ठ हैं – ऐसी बालरूप वाली कुमारिका का ध्यान करें।
- ओंकार स्वरूप वाली लक्ष्मी, विष्णु के अविनाशी हृदय में स्थित हैं, विष्णु के आनंद रूप के केंद्र में विराजमान हैं और ह्रीं बीज की स्वरूपा हैं।
- "क्लीं" बीजमंत्र रूप में अमृतस्वरूप आनंददायिनी, "श्रीं" बीजमंत्र से युक्त दैत्यों का नाश करने वाली, शक्तियों की माला धारण करने वाली और शत्रुओं का संहार करने वाली देवी हैं।
- तेज से प्रकाशित, वरदान देने वाली, शुभकारी देवी – ब्राह्मी, वैष्णवी, भद्रा, कालिका और रक्तरूपिणी शिवा हैं।
- आकार रूप में ब्रह्मस्वरूप, ओंकार रूपी, विष्णु के समान अविनाशी हैं। सिद्धि देने वाली लक्ष्मी, परम लक्ष्मी और लक्ष्य दिलाने वाली लक्ष्मी को नमस्कार है।
- जो करोड़ों सूर्यों के समान तेज और करोड़ों चंद्रमाओं के समान प्रकाश वाली हैं, उनके मध्य सूक्ष्म ब्रह्मस्वरूप स्थित है।
- ओंकार रूपी परमानंद से सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है। हे शिवे! आप सर्वमंगलमयी हैं और सभी कार्यों को सिद्ध करने वाली हैं।
- पहले दिन त्रिनेत्री गौरी, दूसरे दिन वैष्णवी, तीसरे दिन कमला और चौथे दिन सुंदर देवांगना देवी की पूजा करें।
- पाँचवे दिन विष्णु पत्नी लक्ष्मी, छठे दिन वैष्णवी, सातवें दिन वरारोहा (वर देने को उद्यत), आठवें दिन वरदायिनी देवी की पूजा करें।
- नवें दिन खड्ग और त्रिशूलधारी देवी, दसवें दिन देवताओं की अधिदेवता, ग्यारहवें दिन सिद्धिदात्री लक्ष्मी और बारहवें दिन ललिता स्वरूपा देवी की पूजा करें।
- जो मनुष्य इस स्तोत्र का पाठ करते हैं और ईश्वर की स्तुति करते हैं, वे सभी प्रकार की आपदाओं से मुक्त हो जाते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है।. जो व्यक्ति इस स्तोत्र को एक महीने, दो महीने, तीन महीने, चार, पाँच या छह महीने तक दिन में तीन बार पढ़ता है
- जो ब्राह्मण दुःख, दरिद्रता और भय से पीड़ित हैं, वे हजारों जन्मों के कष्टों से मुक्त हो जाते हैं।
- जिसके पास लक्ष्मी (समृद्धि) नहीं है, उसे लक्ष्मी प्राप्त होती है; निःसंतान को श्रेष्ठ संतान मिलती है; धन, यश, आयु और अग्नि, चोर तथा भय से रक्षा मिलती है।
- शाकिनी, भूत, वेताल, सभी प्रकार की बीमारियाँ, राजा के दरबार का भय, युद्ध और शत्रुओं के संकट — इन सबसे यह स्तोत्र रक्षा करता है।
- सभा में, श्मशान में, जेल में, शत्रु के बंधन में या किसी भी बड़े भय में — यह स्तोत्र जपने से सिद्धि और लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
- यह स्तोत्र ईश्वर द्वारा रचा गया है और सभी प्राणियों के कल्याण के लिए है। जो ब्राह्मण इसे नित्य पढ़ते हैं, वे दरिद्र नहीं होते।
- जो लक्ष्मी देवी कमलवन, कदम्ब के पेड़ की शाखा, राजमहल, हाथी, श्वेत घोड़े, बैलों के जोड़े, यज्ञ स्थान, शंख, मंदिर, राजभवन, गंगा तट और गोकुल में निवास करती हैं — वे देवी लक्ष्मी सदा मेरे घर में स्थायी रूप से निवास करें।
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