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हरिनाममालास्तोत्र भगवान विष्णु के विभिन्न नामों और रूपों का गौरवगान करता है, जिससे भक्तों का मन पवित्र होता है, पापों का नाश होता है, और आध्यात्मिक उन्नति होती है। इसका नियमित पाठ जीवन में सुख, शांति, और सुरक्षा प्रदान करता है। इसलिए इसे विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ना या सुनना अत्यंत फलदायक माना जाता है।
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Harinam Mala Strotram Lyrics with Hindi Meaning |
हरिनाममालास्तोत्रम् का महत्व:
1. भगवान विष्णु और उनके विभिन्न रूपों की स्तुति:
यह स्तोत्र भगवान विष्णु के अनेक रूपों और नामों का सुंदर और गहन वर्णन करता है। हर नाम में उनकी विशिष्ट शक्तियाँ, गुण और दिव्यता प्रकट होती है, जिससे भक्ति और श्रद्धा का भाव प्रबल होता है।
2. पापों का नाशक:
स्तोत्र के अन्त में उल्लेख है कि यह हरिनामों से बनी माला पवित्र और पाप नाशिनी है। इसका नियमित जाप या पाठ करने से व्यक्ति के पाप नष्ट होते हैं और मन शुद्ध होता है।
3. शांति और मानसिक एकाग्रता:
हरिनाममालास्तोत्र का जाप करने से मन की शांति, एकाग्रता और आध्यात्मिक उन्नति होती है। भगवान के नामों का उच्चारण भक्ति भाव को बढ़ावा देता है और मानसिक तनाव कम करता है।
4. संकटमोचन:
स्तोत्र में विष्णु के नरसिंह, वामन, राघव आदि रूपों का स्मरण संकटों और शत्रुओं से रक्षा करता है। विष्णु के विभिन्न रूपों की महिमा से भक्तों को साहस और सुरक्षा का अनुभव होता है।
5. आध्यात्मिक ऊर्जा और दिव्यता का संचार:
भगवान के विविध नामों का जप करने से भक्त के अंदर दिव्य ऊर्जा का संचार होता है, जिससे जीवन में सकारात्मकता, आत्मविश्वास और आध्यात्मिक जागृति आती है।
6. सर्वप्रकार की भक्ति के लिए उपयुक्त:
यह स्तोत्र सरल और सुगम भाषा में है, इसलिए सभी वर्ग के लोग इसे पढ़कर या सुनकर अपनी भक्ति को सशक्त बना सकते हैं।
7. परमेश्वर की सर्वव्यापकता का बोध:
हरिनाममालास्तोत्र भगवान विष्णु के विविध रूपों के माध्यम से यह भी सिखाता है कि ईश्वर सर्वत्र व्याप्त और सर्वशक्तिमान हैं।
Lyrics of HarinamMaalaStrotram/ हरिनाममालास्तोत्रम् :
गोविन्दं गोकुलानन्दं गोपालं गोपिवल्लभम् ।
गोवर्घनोद्धं धीरं तं वन्दे गोमतिप्रियम् ॥
नारायणं निराकारं नरवीरं नरोत्तमम् ।
नृसिंहं नागनाथं च तं वन्दे नरकान्तकम् ॥
पीताम्बरं पद्मनाभं पद्माक्षं पुरुषोत्तमम् ।
पवित्रं परमानन्दं तं वन्दे परमेश्वरम् ॥
राघवं रामचन्दं च रावणारिं रमापतिम् ।
राजीवलोचनं रामं तं वन्दे रघुनन्दम् ॥
वामनं विश्वरूपं च वासुदेवं च विठ्ठलम् ।
विश्वेश्वरं विभुं व्यासं तं वन्दे वेदवल्लभम् ॥
दामोदरं दिव्यसिंहं दयालुं दीननायकम् ।
दैत्यारिं देवदेवेशं तं वन्दे देवकीसुतम् ॥
मुरारिं माधवं मत्स्यं मुकुन्दं मुष्टिमर्दनम् ।
मुञ्जकेशं महाबाहुं तं वन्दे मधुसूदनम् ॥
केशवं कमलाकान्तं कामेशं कौस्तुभप्रियम् ।
कौमोदकीधरं कृष्णं तं वन्दे कौरवान्तकम् ॥
भूधरं भुवनान्दं भूतेशं भूतनायकम् ।
भावनैकं भुजङ्गेशं तं वन्दे भवनाशनम् ॥
जनार्दनं जगन्नाथं जगज्जाड्यविनाशकम् ।
जमदग्निं परज्ज्योतिस्तं वन्दे जलशायिनम् ॥
चतुर्भुज चिदानन्दं मल्लचाणूरमर्दनम् ।
चराचरगुरुं देवं तं वन्दे चक्रपाणिनम् ॥
श्रियःकरं श्रियोनाथं श्रीधरं श्रीवरप्रदं ।
श्रीवत्सलधरं सौम्यं तं वन्दे श्रीसुरेश्वरम् ॥
योगीश्वरं यज्ञपतिं यशोदानन्ददायकम् ।
यमुनाजलकल्लोलं तं वन्दे यदुनायकम् ॥
सालग्रामशिलशुद्धं शंखचक्रोपशिभितम् ।
सुरासुरैः सदासेव्यं तं वन्दे साधुवल्लभम् ॥
त्रिविक्रमं तपोमूर्तिं त्रिविधाघौघनाशनम् ।
त्रिस्थलं तीर्थराजेन्द्रं तं वन्दे तुलसीप्रियम् ॥
अनन्तमादिपुरुषमच्युतं च वरप्रदम् ।
आनन्दं च सदानन्दं तं वन्दे चाघनाशनम् ॥
लीलया धृतभूभारं लोकसत्त्वैकवन्दितम् ।
लोकेश्वरं च श्रीकान्तं तं वन्दे लक्ष्मणप्रियम् ॥
हरिं च हरिणाक्षं च हरिनाथं हरप्रियं ।
हलायुधसहायं च तं वन्दे हनुमत्पतिम् ॥
हरिनामकृतमाला प्रवित्र पापनाशिनी ।
बलिराजेन्द्रेण चोक्ता कण्ठे धार्या प्रयत्नतः ॥
इति महावलिप्रोक्तं हरिनाममालास्तोत्रम् सम्पूर्णं
Meaning of Harinam Mala Strotram:
- मैं उस धैर्यवान श्रीहरि को नमन करता हूँ जो गोविन्द हैं, गोकुल के आनन्ददाता हैं, ग्वालों के रक्षक हैं, गोपियों के प्रिय हैं, गोवर्धन पर्वत को उठाने वाले हैं, और गोमती नदी को प्रिय हैं।
- मैं उन भगवान नारायण को नमन करता हूँ जो निराकार हैं, वीर पुरुष हैं, श्रेष्ठ मनुष्यों में सर्वोत्तम हैं, नृसिंह रूप में प्रकट हुए, नागों के स्वामी हैं और नरक का नाश करने वाले हैं।
- मैं पीताम्बरधारी, नाभि में कमल वाले, कमल जैसे नेत्रों वाले, श्रेष्ठ पुरुष, परम पावन और परमानन्द स्वरूप परमेश्वर को नमन करता हूँ।
- मैं रघुकुल के आनंद, श्रीराम को नमन करता हूँ, जो रावण के शत्रु, लक्ष्मीपति, कमलनयन और रघुवंश के गौरव हैं।
- मैं वामन, विश्वरूप, वासुदेव, विठ्ठल, सम्पूर्ण विश्व के ईश्वर, सर्वव्यापी, और वेदों के प्रिय भगवान को नमन करता हूँ।
- मैं दामोदर, दिव्य सिंह के समान तेजस्वी, करुणामय, दीनों के स्वामी, दैत्यों के शत्रु, देवों के ईश्वर और देवकी पुत्र श्रीकृष्ण को नमन करता हूँ।
- मैं मुर और मधु दैत्य का वध करने वाले, माधव, मत्स्यावतार, मुकुंद, मुष्टिक दैत्य का संहार करने वाले, मुञ्जा जटाधारी और महाबली श्रीहरि को नमन करता हूँ।
- मैं केशव, लक्ष्मीपति, कामेश्वर, कौस्तुभमणि के प्रिय, कौमोदकी गदा धारण करने वाले, कृष्ण और कौरवों का अंत करने वाले भगवान को नमन करता हूँ।
- मैं उस भगवान को नमन करता हूँ जो पर्वतधारी, तीनों लोकों को आनन्द देने वाले, समस्त प्राणियों के स्वामी, भूतों के नायक, एकमात्र भाव (भक्ति) के आधार और शेषनाग के अधिष्ठान हैं।
- मैं जनार्दन, जगन्नाथ, संसार की जड़ता को दूर करने वाले, जमदग्नि के रूप में प्रकट हुए, परम प्रकाश स्वरूप और क्षीरसागर में शयन करने वाले हरि को नमन करता हूँ।
- मैं चतुर्भुज, चिदानंदस्वरूप, मल्ल और चाणूर जैसे दैत्यों का वध करने वाले, चराचर जगत के गुरु और चक्रधारी भगवान को नमन करता हूँ।
- मैं लक्ष्मी को देने वाले, लक्ष्मीपति, श्रीधर, वरदायक, श्रीवत्स चिह्नधारी, सौम्यस्वभाव और देवताओं के स्वामी श्रीहरि को नमन करता हूँ।
- मैं योगियों के ईश्वर, यज्ञों के अधिपति, यशोदा माता के आनन्ददाता, यमुना जल में क्रीड़ा करने वाले और यदुवंश के स्वामी को नमन करता हूँ।
- मैं शालग्राम शिला के रूप में पूज्य, शंख और चक्र से विभूषित, देवताओं और असुरों द्वारा सेवित, तथा संतों को प्रिय भगवान को नमन करता हूँ।
- मैं त्रिविक्रम रूपधारी, तपस्वी स्वरूप, तीन प्रकार के पापों को नष्ट करने वाले, तीनों लोकों में स्थित तीर्थराज और तुलसी के प्रिय भगवान को नमन करता हूँ।
- मैं अनंत, आदिपुरुष, अच्युत, वर देने वाले, आनन्दस्वरूप, सदा आनन्दित और पापों का नाश करने वाले हरि को नमन करता हूँ।
- मैं उस भगवान को नमन करता हूँ जिन्होंने लीला से धरती का भार हटाया, लोकों द्वारा पूजित हैं, लोकों के स्वामी, लक्ष्मीपति और लक्ष्मण के प्रिय हैं।
- मैं हरि, मृग जैसे नेत्रों वाले, श्रीहरिनाथ, श्रीहरि के प्रिय, बलराम (हलायुध) के सहयोगी और हनुमान के स्वामी को नमन करता हूँ।
- यह हरिनामों से बनी माला पवित्र और पापों का नाश करने वाली है। इसे बलिराज द्वारा कहा गया है, और इसे श्रद्धा से गले में धारण करना चाहिए।
हरिनाममालास्तोत्र भगवान विष्णु के विभिन्न नामों और रूपों का गौरवगान करता है, जिससे भक्तों का मन पवित्र होता है, पापों का नाश होता है, और आध्यात्मिक उन्नति होती है। इसका नियमित पाठ जीवन में सुख, शांति, और सुरक्षा प्रदान करता है। इसलिए इसे विशेष श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ना या सुनना अत्यंत फलदायक माना जाता है।
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