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Surya Ka Mithun Rashi Mai Gochar Ka Prabhav

Surya Ka Mithun Rashi Mai Gochar Ka Prabhav, Surya Mithun Rashi Mai kab jayenge, surya gochar june 2025, मिथुन संक्रांति क्या है, १२ राशियों पर असर | मिथुन संक्रांति का महत्त्व: Surya Ka Mithun Rashi Mai Gochar 2025:  जब सूर्य वृषभ राशि से मिथुन में प्रवेश करते हैं  तो उसे मिथुन संक्रांति कहते हैं| ज्योतिष के हिसाब से इस दिन के बाद अगले करीब ३१ दिन तक सूर्य मिथुन राशी में रहता है| जब सूर्य मिथुन राशि में रहते हैं तो भारत के गुवाहाटी में कामख्या मंदिर में  अम्बुबाची का मेला लगता है जब मंदिर के कपाट कुछ दिनों के लिए बंद किये जाते हैं, ऐसा कहा जाता है की साल में एक बार माता कामख्या रजस्वला होती है अतः इसीलिए कुछ दिनों के लिए मंदिर का पठ बंद रहता है और इन्ही दिनों मंदिर में मेला लगता है | ये सिर्फ साल में एक बार होता है और पुरे विश्व से लोग यहाँ आते है| भारत के बहुत से भागो में इस दिन लोग भगवान् विष्णु की पूजा करते हैं. कई भागो में मानसून आ जाता है और लोग बारिश का भी आनंद लेते हैं|  Surya Ka Mithun Rashi Mai Gochar 2025 Surya Ka Mithun Rashi Mai Gochar Ka Pra...

Shree Bhu Varah Strotram Lyrics Ke Fayde

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 "श्री भू वराह स्तोत्रम्" — श्रीमद्भागवतम् के तृतीय स्कंध के त्रयोदश अध्याय से लिया गया है। इसमें ऋषियों द्वारा वराह अवतार की स्तुति की गई है। यह स्तोत्र अत्यंत गूढ़, वेदमयी भाषा में भगवान वराह को समर्पित है, जिन्होंने पृथ्वी का रसातल से उद्धार किया।

भगवान् ने अपने दंष्ट्रा के अग्रभाग से पृथ्वी को धारण किया था. 

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Shree Bhu Varah Strotram Lyrics Ke Fayde

स्तोत्र की विशेषता:

  • यह स्तोत्र भक्ति, ज्ञान और वेदांत का अद्भुत संगम है।
  • वराह अवतार को यज्ञस्वरूप कहा गया है, जिससे यह दर्शाया गया है कि परमात्मा स्वयं वेद और यज्ञरूप हैं।
  • भगवान वराह के दिव्य रूप का वर्णन बहुत ही काव्यात्मक और प्रतीकमय है।

वराह स्तोत्र के लाभ: 

  1. वराह स्तोत्र का नित्य पाठ करने से साधक को शक्ति और भय से मुक्ति मिलती है. 
  2. जीवन में से परेशानियों का निवारण होता है. 
  3. शत्रुओं का नाश होता है. 
  4. नकारात्मक उर्जाओं से रक्षा होती है. 
  5. स्वास्थ्य लाभ होता है. 
  6. परिवार में सुख-शांति और सम्पन्नता आती है ।

YouTube में सुनिए 

Lyrics of श्री भू वराह स्तोत्रम्/Shri Bhu Varaha Stotram:

ऋषय ऊचु:।

जितं जितं तेऽजित यज्ञभावना

त्रयीं तनूं स्वां परिधुन्वते नमः ।

यद्रोमगर्तेषु निलिल्युरध्वराः

तस्मै नमः कारणसूकराय ते ॥ 1 ॥

रूपं तवैतन्ननु दुष्कृतात्मनां

दुर्दर्शनं देव यदध्वरात्मकम् ।

छंदांसि यस्य त्वचि बर्हिरोम-

स्स्वाज्यं दृशि त्वंघ्रिषु चातुर्होत्रम् ॥ 2 ॥

स्रुक्तुंड आसीत्स्रुव ईश नासयो-

रिडोदरे चमसाः कर्णरंध्रे ।

प्राशित्रमास्ये ग्रसने ग्रहास्तु ते

यच्चर्वणंते भगवन्नग्निहोत्रम् ॥ 3 ॥

दीक्षानुजन्मोपसदः शिरोधरं

त्वं प्रायणीयो दयनीय दंष्ट्रः ।

जिह्वा प्रवर्ग्यस्तव शीर्षकं क्रतोः

सभ्यावसथ्यं चितयोऽसवो हि ते ॥ 4 ॥

सोमस्तु रेतः सवनान्यवस्थितिः

संस्थाविभेदास्तव देव धातवः ।

सत्राणि सर्वाणि शरीरसंधि-

स्त्वं सर्वयज्ञक्रतुरिष्टिबंधनः ॥ 5 ॥

नमो नमस्तेऽखिलयंत्रदेवता

द्रव्याय सर्वक्रतवे क्रियात्मने ।

वैराग्य भक्त्यात्मजयाऽनुभावित

ज्ञानाय विद्यागुरवे नमॊ नमः ॥ 6 ॥

दंष्ट्राग्रकोट्या भगवंस्त्वया धृता

विराजते भूधर भूस्सभूधरा ।

यथा वनान्निस्सरतो दता धृता

मतंगजेंद्रस्य स पत्रपद्मिनी ॥ 7 ॥

त्रयीमयं रूपमिदं च सौकरं

भूमंडले नाथ तदा धृतेन ते ।

चकास्ति शृंगोढघनेन भूयसा

कुलाचलेंद्रस्य यथैव विभ्रमः ॥ 8 ॥

संस्थापयैनां जगतां सतस्थुषां

लोकाय पत्नीमसि मातरं पिता ।

विधेम चास्यै नमसा सह त्वया

यस्यां स्वतेजोऽग्निमिवारणावधाः ॥ 9 ॥

कः श्रद्धधीतान्यतमस्तव प्रभो

रसां गताया भुव उद्विबर्हणम् ।

न विस्मयोऽसौ त्वयि विश्वविस्मये

यो माययेदं ससृजेऽति विस्मयम् ॥ 10 ॥

विधुन्वता वेदमयं निजं वपु-

र्जनस्तपः सत्यनिवासिनो वयम् ।

सटाशिखोद्धूत शिवांबुबिंदुभि-

र्विमृज्यमाना भृशमीश पाविताः ॥ 11 ॥

स वै बत भ्रष्टमतिस्तवैष ते

यः कर्मणां पारमपारकर्मणः ।

यद्योगमाया गुण योग मोहितं

विश्वं समस्तं भगवन् विधेहि शम् ॥ 12 ॥

इति श्रीमद्भागवते महापुराणे तृतीयस्कंधे श्री वराह प्रादुर्भावोनाम त्रयोदशोध्यायः ।

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