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Kundli Ke Pahle Ghar Mai Shani Ka Fal

Kundli Ke Pahle Ghar Mai Shani Ka Fal, लग्न में शनि का प्रभाव, कुंडली के पहले भाव में शनि का फल, लग्न में शनि के उपाय, Saturn in 1st house. जन्म कुंडली में पहला घर जिसे की लग्न भी कहा जाता है बहुत महत्त्वपूर्ण होता है क्यूंकि इसका सम्बन्ध हमारे मस्तिष्क से होता है और इसीलिए हमारे निर्णय लेने की क्षमता को प्रभावित करता है, लग्न में मौजूद ग्रह और राशि का बहुत गहरा प्रभाव जातक पर रहता है जीवन भर |  Kundli Ke Pahle Ghar Mai Shani Ka Fal Read in English - Saturn in First House Impacts अब आइये जानते हैं शनि ग्रह के बारे में कुछ ख़ास बातें ज्योतिष के अनुसार  : हमारे कर्मो के फल को देने वाले ग्रह हैं शनिदेव इसीलिए इन्हें न्याय के साथ जोड़ा जाता है | वैदिक ज्योतिष के अनुसार शनि का सम्बन्ध  मेहनत, अनुशाशन, गंभीरता, जिम्मेदारी, स्वाभिमान, दुःख, अहंकार, देरी, भूमि, रोग आदि से होता है |  शनि ग्रह मेष राशि में नीच के होते हैं और तुला राशि में उच्च के होते हैं | शनि ग्रह की मित्र राशियाँ हैं – वृषभ, मिथुन और कन्या| शनि ग्रह की शत्रु राशियाँ है – कर्क, सिंह और वृश्चिक| Watch Video Here शनि की दृष्

Shree Narayan Kavach Arth Sahit

Shree Narayan Kavach Arth Sahit, श्री नारायण कवच पाठ के लाभ क्या हैं?, suraksha aur sampannta ke liye narayan kawach prayog. 

Shree Narayan Kavach :इस शक्तिशाली कवच का उल्लेख श्रीमद्भागवत महापुराण के छठे स्कन्द के आठवे अध्याय में मिलता है। किसी भी विषम परिस्थिति में अगर कोई जातक श्री नारायण कवच को धारण करता है तो स्वयं भगवान् श्री हरी विष्णु उसकी हर प्रकार के शत्रुओं से और मुसीबतों से उसकी रक्षा करते हैं।

द्वापर युग में राजा परीक्षित को शत्रुओं  से बचने के लिए उनके गुरु ऋषि शुक ने उन्हें नारायण कवच धारण करने को कहा था| देवराज इंद्र ने भी इसका प्रयोग किया था ऋषि विश्वरूप से सीख कर |

Shree Narayan Kavach Arth Sahit, श्री नारायण कवच पाठ के लाभ क्या हैं?, suraksha aur sampannta ke liye narayan kawach prayog.
Shree Narayan Kavach Arth Sahit


नारायण कवच पाठ के लाभ क्या हैं ?

  1. ये कवच भगवान् नारायण के शक्ति से ओत प्रोत है अतः हर प्रकार से हर मुसीबत से रक्षा करने में समर्थ है |
  2. इसके पाठ से भौतिक शत्रुओ से भी रक्षा होती है |
  3. अदृश्य बाधाओं का भी नाश होता है |
  4. जो भी मनुष्य इसे धारण करता है उसके अन्दर से हर प्रकार के भय का नाश हो जाता है |
  5. नारायण कवच का पाठ करने से जातक हर प्रकार के मुसीबतों का सामना आराम से कर लेता है | Shree Narayan Kavach 

अथ श्री नारायण कवचम :


॥ राजोवाच ॥
यया गुप्तः सहस्त्राक्षः सवाहान्‌ रिपुसैनिकान्‌।
क्रीडन्निव विनिर्जित्य त्रिलोक्या बुभुजे श्रियम्‌॥ १ ॥

भगवंस्तन्ममाख्याहि वर्म नारायणात्मकम् ।
यथाऽऽततायिनः शत्रून् येन गुप्तोऽजयन्मृधे ॥ २॥

श्रीशुक उवाच ।
वृतः पुरोहितस्त्वाष्ट्रो महेन्द्रायानुपृच्छते।
नारायणाख्यं वर्माह तदिहैकमनाः श्रूणु॥ ३॥ Shree Narayan Kavach 

॥ विश्वरूप उवाच ॥
धौताङ्घ्रिपाणिराचम्य सपवित्र उदङ्मुखः।
कृतस्वाङ्गकरन्यासो मन्त्राभ्यां वाग्यतः शुचिः॥ ४॥

नारायणमयं वर्म संनह्येद भय आगते।
पादयोर्जानुनोरूर्वोरूदरे हृद्यथोरसि ॥ ५॥

मुखे शिरस्यानुपूर्व्यादोंकारादीनि विन्यसेत्।
ॐ नमो नारायणायेति विपर्ययमथापि वा॥ ६॥Shree Narayan Kavach 

करन्यासं ततः कुर्याद्‌ द्वादशाक्षरविद्यया।
प्रणवादियकारान्तमङ्गुल्यङ्गुष्ठपर्वसु ॥७॥

न्यसेद्धृदय ओङ्कारं विकारमनु मूर्धनि।
षकारं तु भ्रुवोर्मध्ये णकारं शिखया दिशेत्‌॥ ८ ॥

वेकारं नेत्रयोर्युञ्ज्यान्नकारं सर्वसन्धिषु।
मकारमस्त्रमुहिश्यि मन्त्रमूर्तिर्भवेद्‌ बुधः॥ ९॥Shree Narayan Kavach 

सविसर्गं फडन्तं तत् सर्वदिक्षु विनिर्दिशेत्।
ॐ विष्णवे नम इति ॥ १०॥

आत्मानं परमं ध्यायेद्‌ ध्येयं षट्शक्तिभिर्युतम्‌।
विद्यातेजस्तपोमूर्तिमिमं मन्त्रमुदाहरेत्‌ ॥ ११ ॥

ॐ हरिर्विदध्यान्मम सर्वरक्षां न्यस्ताङ्घ्रिपद्मः पतगेन्द्रपृष्ठे।
दरारिचर्मासिगदेषुचापाशान्ददधानोऽष्टगुणोऽष्टबाहुः॥ १२॥

जलेषु मां रक्षतु मत्स्यमूर्ति-र्यादोगणेभ्यो वरूणस्य पाशात्‌।
स्थलेषु मायावटुवामनोऽव्यात्‌ त्रिविक्रमः खेञ्वतु विश्वरूपः ॥ १३॥ Shree Narayan Kavach 

दुर्गष्वटव्याजिमुखादिषु प्रभुः पायान्नृसिंहोऽसुरयुथपारिः।
विमुञ्चतो यस्य महाट्टहासं दिशो विनेदुर्न्यपतंश्च गर्भाः ॥ १४॥

रक्षत्वसौ माध्वनि यज्ञकल्पः स्वदंष्ट्रयोन्नीतधरो वराहः।
रामोऽद्रिकूटेष्वथ विप्रवासे सलक्ष्मणोऽव्या भरताग्रजोऽस्मान्‌॥ १५॥

मामुग्रधर्मादखिलात् प्रमादान्नारायणः पातु नरश्च हासात्।
दत्तस्त्वयोगादथ योगनाथः पायाद् गुणेशः कपिलः कर्मबन्धात् ॥ १६॥ Shree Narayan Kavach 

सनत्कुमारो वतु कामदेवाद्धयशीर्षा मां पथि देवहेलनात्।
देवर्षिवर्यः पुरूषार्चनान्तरात् कूर्मो हरिर्मां निरयादशेषात् ॥ १७॥

धन्वन्तरिर्भगवान् पात्वपथ्याद् द्वन्द्वाद् भयादृषभो निर्जितात्मा।
यज्ञश्च लोकादवताज्जनान्ताद् बलो गणात् क्रोधवशादहीन्द्रः ॥ १८॥

द्वैपायनो भगवानप्रबोधाद् बुद्धस्तु पाखण्डगणात् प्रमादात्।
कल्किः कले कालमलात् प्रपातु धर्मावनायोरूकृतावतारः ॥ १९॥Shree Narayan Kavach 

मां केशवो गदया प्रातरव्याद् गोविन्द आसङ्गवमात्तवेणुः।
नारायण प्राह्ण उदात्तशक्ति र्मध्यन्दिने विष्णुररीन्द्रपाणिः ॥ २०॥

देवोऽपराह्ने मधुहोग्रधन्वा सायं त्रिधामावतु माधवो माम्।
दोषे हृषीकेश उतार्धरात्रे निशीथ एकोऽवतु पद्मनाभः ॥ २१॥

श्रीवत्सधामापररात्र ईशः प्रत्यूष ईशोऽसिधरो जनार्दनः।
दामोदरोऽव्यादनुसन्ध्यं प्रभाते विश्वेश्वरो भगवान् कालमूर्तिः ॥ २२॥

चक्रं युगान्तानलतिग्मनेमि भ्रमत् समन्ताद् भगवत्प्रयुक्तम्।
दन्दग्धि दन्दग्ध्यरिसैन्यमासु कक्षं यथा वातसखो हुताशः ॥ २३॥ Shree Narayan Kavach 

गदेऽशनिस्पर्शनविस्फुलिङ्गे निष्पिण्ढि निष्पिण्ढ्यजितप्रियासि।
कूष्माण्डवैनायकयक्षरक्षो भूतग्रहांश्चूर्णय चूर्णयारीन् ॥ २४॥

त्वं यातुधानप्रमथप्रेतमातृ पिशाचविप्रग्रहघोरदृष्टीन्।
दरेन्द्र विद्रावय कृष्णपूरितो भीमस्वनोऽरेर्हृदयानि कम्पयन् ॥ २५॥

त्वं तिग्मधारासिवरारिसैन्य मीशप्रयुक्तो मम छिन्धि छिन्धि।
चर्मञ्छतचन्द्र छादय द्विषामघोनां हर पापचक्षुषाम् ॥ २६॥ Shree Narayan Kavach 

यन्नो भयं ग्रहेभ्यो भूत् केतुभ्यो नृभ्य एव च।
सरीसृपेभ्यो दंष्ट्रिभ्यो भूतेभ्योंऽहोभ्य एव वा ॥ २७॥

सर्वाण्येतानि भगन्नामरूपास्त्रकीर्तनात्।
प्रयान्तु संक्षयं सद्यो ये नः श्रेयः प्रतीपकाः ॥ २८॥

गरूड़ो भगवान् स्तोत्रस्तोभश्छन्दोमयः प्रभुः।
रक्षत्वशेषकृच्छ्रेभ्यो विष्वक्सेनः स्वनामभिः ॥ २९॥

सर्वापद्भ्यो हरेर्नामरूपयानायुधानि नः।
बुद्धिन्द्रियमनः प्राणान् पान्तु पार्षदभूषणाः ॥ ३०॥ Shree Narayan Kavach 

यथा हि भगवानेव वस्तुतः सद्सच्च यत्।
सत्यनानेन नः सर्वे यान्तु नाशमुपाद्रवाः ॥ ३१॥

यथैकात्म्यानुभावानां विकल्परहितः स्वयम्।
भूषणायुद्धलिङ्गाख्या धत्ते शक्तीः स्वमायया ॥ ३२॥

तेनैव सत्यमानेन सर्वज्ञो भगवान् हरिः।
पातु सर्वैः स्वरूपैर्नः सदा सर्वत्र सर्वगः ॥ ३३॥

विदिक्षु दिक्षूर्ध्वमधः समन्तादन्तर्बहिर्भगवान् नारसिंहः।
प्रहापयँल्लोकभयं स्वनेन ग्रस्तसमस्ततेजाः ॥ ३४॥Shree Narayan Kavach 

मघवन्निदमाख्यातं वर्म नारयणात्मकम्।
विजेष्यस्यञ्जसा येन दंशितोऽसुरयूथपान् ॥ ३५॥

एतद् धारयमाणस्तु यं यं पश्यति चक्षुषा।
पदा वा संस्पृशेत् सद्यः साध्वसात् स विमुच्यते ॥ ३६॥

न कुतश्चित भयं तस्य विद्यां धारयतो भवेत्।
राजदस्युग्रहादिभ्यो व्याघ्रादिभ्यश्च कर्हिचित् ॥ ३७॥

इमां विद्यां पुरा कश्चित् कौशिको धारयन् द्विजः।
योगधारणया स्वाङ्गं जहौ स मरूधन्वनि ॥ ३८॥ Shree Narayan Kavach 

तस्योपरि विमानेन गन्धर्वपतिरेकदा।
ययौ चित्ररथः स्त्रीर्भिवृतो यत्र द्विजक्षयः ॥ ३९॥

गगनान्न्यपतत् सद्यः सविमानो ह्यवाक् शिराः।
स वालखिल्यवचनादस्थीन्यादाय विस्मितः।
प्रास्य प्राचीसरस्वत्यां स्नात्वा धाम स्वमन्वगात् ॥ ४०॥

॥ श्रीशुक उवाच ॥

य इदं शृणुयात् काले यो धारयति चादृतः।
तं नमस्यन्ति भूतानि मुच्यते सर्वतो भयात् ॥ ४१॥

एतां विद्यामधिगतो विश्वरूपाच्छतक्रतुः।
त्रैलोक्यलक्ष्मीं बुभुजे विनिर्जित्यऽमृधेसुरान् ॥ ४२॥

॥ इति श्रीमद्भागवतमहापुराणे पारमहंस्यां संहितायां षष्ठस्कन्धे नारायणवर्मकथनं नामाष्टमोऽध्यायः ॥

नारायण कवच के श्लोको के अर्थ इस प्रकार हैं :

  1. राजा परीक्षित ने पूछा भगवन्‌, देवराज इन्द्र ने जिससे सुरक्षित होकर शत्रुओं की चतुरंगिणी सेना पर खेल-खेल में अनायास ही विजय प्राप्त कर त्रिलोकी की राजलक्ष्मी का उपभोग किया, आप उस नारायण कवच को मुझे सुनायें और यह भी बताएं कि उन्होंने किस प्रकार सुरक्षित होकर रणभूमि में आक्रमणकारी शत्रुओं पर विजय प्राप्त की | Shree Narayan Kavach 
  2. श्री शुकदेव जी ने कहा परीक्षित्‌, जब देवताओं ने विश्वरूप को अपना पुरोहित बना लिया, तब देवराज इन्द्र के प्रश्‍न करने पर विश्वरूप ने उन्हें नारायण कवच का उपदेश दिया। तुम अपने चित्त को एकाग्र करके उसका श्रवण करो|
  3. विश्वरूप ने कहा देवराज इन्द्र | भय का अवसर आने पर नारायण कवच को धारण कर अपने शरीर को सुरक्षित कर लेना चाहिये। उसकी विधि यह है कि सबसे पहले हाथ-पैर धोकर आचमन करे, तत्पश्चात हाथ में कुश की पवित्री धारण कर उत्तर दिशा में मुँह करके बैठ जाएँ।Shree Narayan Kavach 
  4. इसके बाद कवच धारण करने के बाद और कुछ न बोलने का निश्चय करें और पवित्रता से ॐ नमो नारायणाय और ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इन मन्त्रों के द्वारा हृदयादि अंगन्यास तथा अंगुष्ठादि करन्यास करे |
  5. पहले ॐ नमो नारायणाय इस अष्टाक्षर मन्त्र के ॐ आदि आठ अक्षरों का क्रमशः पैरों, घुटनों, जाँघों, पेट, हदय, वक्षःस्थल, मुख और सिर में न्यास करे। अथवा पूर्वोक्त मन्त्र के यकार से लेकर ॐ कारपर्यन्त आठ अक्षरों का सिर से आरम्भ करके उन्हीं आठ अंगों में विपरीत क्रम से न्यास करे |
  6. तत्पश्चात ॐ नमो भगवते वासुदेवाय इस द्वादशाक्षर-मन्त्र के ॐ आदि बारह अक्षरों का दायीं तर्जनी से बायीं तर्जनी तक दोनों हाथ की आठ अँगुलियों और दोनों अंगूठों की दो-दो गाँठों में न्यास करे| 
  7. इसके बाद ॐ विष्णवे नमः  इस मन्त्र के पहले अक्षर ॐ का हदय में, वि का ब्रह्मरंध्र में, ष का दोनों भौंहों के बीच में, ण का शिखा में, वे का दोनों आँखों में और न का शरीर की सब जोड़ों में न्यास करे। तदनन्तर  ॐ मः अस्त्राय फट्‌ कहकर दिग्बन्ध करें। इस प्रकार न्यास करने की विधि को जानने वाला व्यक्ति मन्त्र के स्वरूप हो जाता है |
  8. तत्पश्चात अपनी समस्त 6 शक्तियों, ऐश्वर्य, लक्ष्मी, धर्म, यश, ज्ञान और वैराग्य से परिपूर्ण अपने इष्टदेव का ध्यान करें तथा अपने को भी तदरूप ही चिन्तन करे। इसके बाद हीं विद्या, तेज और तप के स्वरूप इस कवच का पाठ करे|
  9. भगवान्‌ श्रीहरि गरूर जी के पीठ पर अपने चरण-कमल रखे हुए हैं। जिनकी आठौं सिद्धियाँ अणिमा, महिमा,गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व सेवा कर रही हैं तथा जो अपने आठ हाथों में शंख, चक्र, ढाल, तलवार, गदा, बाण, धनुष और पाश धारण किये हुए हैं। वे ओमकारस्वरुप प्रभु सब प्रकार से मेरी रक्षा करें॥ Shree Narayan Kavach 
  10. मत्स्यमूर्ति भगवान्‌ जल के भीतर जलजंतुरूपी वरुणपाश से मेरी रक्षा करें। माया से ब्रह्मचारी का रूप धारण करने वाले वामन भगवान् स्थल पर और विश्वरूप श्री त्रिविक्रम भगवान्‌ आकाश में मेरी रक्षा करें॥ 
  11. जिनके भयंकर अट्टहास करने पर सभी दिशाएँ गुंजायमान हो उठी थीं और दैत्यों के गर्भवती पत्नियों के गर्भ गिर गये थे, वे दैत्यपतियों के शत्रु भगवान्‌ नृसिंह किले, वन, युद्धस्थल आदि विषम स्थानों में मेरी रक्षा करें॥ 
  12. अपनी दाढ़ों पर पृथ्वी को धारण करने वाले यज्ञमूर्ति वराह भगवान्‌ मार्ग में, परशुराम भगवान् पर्वतों के शिखरों पर तथा श्री लक्ष्मण और भरत के बड़े भाई भगवान्‌ श्रीरामचन्द्र प्रवास के समय मेरी रक्षा करें॥ 
  13. भगवान्‌ नारायण मारण-मोहन आदि भयंकर अभिचारों और सब प्रकार के प्रमादों से मेरी रक्षा करें। ऋषिश्रेष्ठ नर गर्व से, योगेश्वर भगवान्‌ दत्तात्रेय योग के विघ्नों से और त्रिगुणाधिपति भगवान्‌ कपिल कर्मबन्धनों से मेरी रक्षा करें॥  Shree Narayan Kavach 
  14. परम ऋषि सनत्कुमार कामदेव से, भगवान्‌ हयग्रीव मार्ग से गुजरते समय देवमूर्तियों को नमस्कार आदि न करने के अपराध से, देवर्षि नारद देव पूजा के समय संभावित सेवापराधों से और भगवान्‌ कच्छप सभी तरह के नरकों से मेरी रक्षा करें॥ 
  15. भगवान्‌ धनवन्तरि कुपथ्य अर्थात स्वास्थ्य को हानि पहुंचने वाले आहार से, जितेन्द्रिय भगवान्‌ ऋषभ देव सुख-दुःख आदि भयानक द्वन्द्दों से, यज्ञ भगवान्‌ लोकापवाद से, भगवान् बलराम मनुष्यों के द्वारा दिए गए कष्टों से और श्रीशेषजी क्रोधवश नामक सर्पो के गण से मेरी रक्षा करें॥
  16. महर्षि वेदव्यास जी अज्ञान से तथा बुद्धदेव पाखण्डियों के द्वारा फैलाये गए प्रमाद से मेरी रक्षा करें। धर्म की रक्षा हेतु, महान्‌ अवतार धारण करनेवाले भगवान्‌ कल्कि, पाप बहुल कलियुग के दोषों से मेरी रक्षा करें ॥ 
  17. प्रातःकाल, भगवान् केशव अपनी गदा से, दिन के दूसरे भाग चढ़ जाने पर भगवान् गोविन्द अपनी बांसुरी लेकर, दिन के तीसरे भाग दोपहर के पहले भगवान् नारायण अपनी तीक्ष्ण शक्ति लेकर तथा दिन के चौथे भाग मध्य काल को भगवान् विष्णु चक्रराज सुदर्शन लेकर मेरी रक्षा करें॥  Shree Narayan Kavach 
  18. दिन के पांचवे भाग अपराहन काल में अपना प्रचण्ड धनुष लेकर भगवान्‌ मधुसूदन मेरी रक्षा करें। छठ्ठे भाग, सायंकाल में ब्रह्मा आदि त्रिमूर्तिधारी माधव, रात के छः भागो में से प्रथम भाग प्रदोष काल मे हृषीकेश, रात के दूसरे भाग अर्धरात्रि के पूर्व तथा अर्धरात्रि के समय अकेले भगवान्‌ पद्मनाभ मेरी रक्षा करें॥
  19. रात्रि के चौथे भाग पिछले पहर में श्रीवत्सलांछन श्रीहरि, रात में पांचवे भाग उषाकाल में खड्गधारी भगवान्‌ जनार्दन, रात के छठ्ठे भाग सूर्योदय से पूर्व श्रीदामोदर और सम्पूर्ण संध्याओं में कालमूर्ति भगवान्‌ विश्वेश्वर मेरी रक्षा करें ॥ 
  20. हे सुदर्शन ! आपका आकार चक्र की तरह है। आपके किनारे का भाग प्रलयकालीन अग्नि की तरह अति तीव्र है। आप भगवान की प्रेरणा से सब ओर भ्रमण करते रहते हें। जैसे आग वायु की सहायता से सूखे घास-फूस को जला डालती है, वैसे ही आप हमारी शत्रुसेना को शीघ्र-से-शीघ्र जला दीजिये, जला दीजिये॥ 
  21. हे कौमोदकी गदा ! आपसे छूटनेवाली चिनगारियों का स्पर्श वज्र के समान असह्य है। हे भगवान्‌ अजित की प्रिय मैं आपका सेवक हूँ। इसलिये आप कूष्माण्ड, विनायक, यक्ष, राक्षस, भूत और प्रेतादि ग्रहों को अभी कुचल डालिये तथा मेरे शत्रुओं को चूर-चूर कर दीजिये ॥  Shree Narayan Kavach 
  22. हे शंखश्रेष्ठ ! आप भगवान्‌ श्रीकृष्ण के फूँकने मात्र से भयावह नाद करके मेरे शत्रुओं का दिल दहला दीजिये एवं यातुधान, प्रमथ, प्रेत, मातृका, पिशाच तथा ब्रह्मराक्षस आदि भयंकर प्राणियों को यहाँ से शीघ्र दूर कर दीजिये॥ 
  23. हे भगवान् की खड़ग श्रेष्ठ नन्दक ! आपकी धार बहुत तीक्ष्ण है। आप ईश्वर की प्रेरणा से मेरे शत्रुओं को छिन्न-भिन्न कर दीजिये। भगवान की प्यारी ढाल ! आपमें सैकड़ों चन्द्राकार मण्डल हैं। आप पाप दृष्टि रखने वाले मेरे शत्रुओं के नेत्रों को बंद कर उन्हें सदा के लिये अन्धा बना दीजिये॥ 
  24. ग्रहों, धूमकेतु आदि केतुओं, दुष्ट मनुष्यों, सरीसृप जीवों, दाढ़ोंवाले हिंसक पशुओं, भूत-प्रेतों तथा पापी प्राणियों से हमें जो-जो भय हों और जो-जो हमारे शुभ के विरोधी हों-वे सभी भगवान के नाम, रूप तथा आयुधों का कीर्तन करने से तत्काल नष्ट हो जायँ॥ Shree Narayan Kavach 
  25. बृहद्‌, रथन्तर आदि सामवेद के स्तोत्रों से जिनकी स्तुति की जाती है, वे वेदमूर्ति भगवान्‌ गरुड और विष्वकसेनजी अपने नाम के उच्चारण मात्र के प्रभाव से हमें सब प्रकार की विपत्तियों से रक्षा करें ॥ २९ ॥
  26. श्रीहरि के नाम, रूप, वाहन, आयुध और श्रेष्ठ पार्षद हमारी बुद्धि, इन्द्रिय, मन और प्राणों को सब तरह की विप्पतियों से बचायें॥ 
  27. जितना भी कार्य अथवा कारणरूप जगत्‌ है, वह वास्तव में भगवान्‌ ही हैं-इस सत्य के प्रभाव से हमारे सारे पाप नष्ट हो जायँँ॥ 
  28. ब्रह्म और आत्मा की एकता का अनुभव जो लोग कर चुके हैं, उनकी दृष्टि में ईश्वर का स्वरूप समस्त विकल्पों और भेदों से रहित है, फिर भी वे अपनी माया-शक्ति के द्वारा भूषण, आयुध और रूप नामक शक्तियों को धारण करते हैं । यह बात निश्चित हीं सत्य है । अतः सर्वज्ञ, सर्वव्यापक भगवान्‌ श्रीहरि सदा-सर्वत्र अपने सभी स्वरूपों से हमारी रक्षा करें॥ Shree Narayan Kavach 
  29. जो अपने भयंकर अट्टहास से सब लोगों के भय को समाप्त कर देते हैं और अपने तेज से सबके तेज का ग्रास कर लेते हैं, वे भगवान्‌ नृसिंह दिशा-विदिशा में, नीचे-ऊपर, बाहर-भीतर सब ओर से हमारी रक्षा करें ॥ 
  30. देवराज इन्द्र ! मैंने तुम्हें यह नारायण कवच सुना दिया। अब तुम इस कवच से अपने को सुरक्षित कर लो। बस, फिर तुम अनायास ही सब दैत्यपतियों को जीत लोगे॥
  31. इस नारायण कवच को धारण करने वाला पुरुष जिस किसी को भी अपने आखों से देख लेता अथवा पैरों से भी छू देता है, वह तत्काल हीं समस्त भयों से मुक्त हो जाता है ॥ 
  32. इस वैष्णवी विद्या को धारण कर लेने वालों को राजा, डाकू, प्रेत, पिशाच और बाघ आदि हिंसक जीवों से कभी किसी प्रकार का डर नहीं होता ॥ 
  33. देवराज! पुरातन काल की बात है, एक कौशिक गोत्र के ब्राह्मण ने इस विद्या को धारण करके योगधारणा से अपना शरीर मरुभूमि में त्याग दिया ॥ 
  34. जिस स्थान पर उस ब्राह्मण का मृत शरीर पड़ा था, उसके ऊपर से एक दिन गन्धर्वराज चित्ररथ अपनी स्त्रियों के साथ विमान पर बैठकर निकले॥  Shree Narayan Kavach 
  35. इस स्थान पर आते ही वे नीचे की ओर सिर किये विमान सहित आसमान से धरती पर गिर पड़े। ऐसा होने पर उनके आश्चर्य की सीमा न रही। जब उन्हें वालखिल्य मुनियोंने बतलाया कि यह नारायण कवच धारण करने का प्रभाव है, तब उन्होंने उस ब्राह्मण देवता की हड्डियों को ले जाकर पूर्ववाहिनी सरस्वती नदी में प्रवाहित कर दिया और फिर स्नान करके वे अपने लोक को गये॥ 
  36. श्रीशुकदेव जी कहते हैं- परीक्षित्‌! जो भी मनुष्य इस नारायण कवच को समय पर सुनता है और जो आदरपूर्वक इसे धारण करता है, उसके समक्ष सभी प्राणी आदर से अपना सर झुका देते हैं और वह सब प्रकार के भयों से मुक्त हो जाता है ॥ 
  37. परीक्षित्‌! इस तरह शतक्रतु इन्द्र ने आचार्य विश्वरूपजी से यह नारायण कवच रूपी वैष्णवी विद्या प्राप्त करके रणभूमि में असुरों को जीत लिया और वे त्रैलोक्यलक्ष्मी का उपभोग करने लगे॥ 
॥ श्री नारायण कवच समाप्त होता है ॥


अतः श्री नारायण कवच एक वरदान है हम सभी के लिए क्यूंकि ये हमारे जीवन को सुरक्षित भी करता है और बाधाओं का नाश भी करता है जिससे हम एक सफल जीवन जी पाते हैं | श्री नारायण की कृपा हमेशा जातक पर बनी रहती है |

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तन्त्रोक्तं देवीसूक्तम्‌ ॥ Tantroktam Devi Suktam ,  Meaning of Tantroktam Devi Suktam Lyrics in Hindi. देवी सूक्त का पाठ रोज करने से मिलती है महाशक्ति की कृपा | माँ दुर्गा जो की आदि शक्ति हैं और हर प्रकार की मनोकामना पूरी करने में सक्षम हैं | देवी सूक्तं के पाठ से माता को प्रसन्न किया जा सकता है | इसमें हम प्रार्थना करते हैं की विश्व की हर वास्तु में जगदम्बा आप ही हैं इसीलिए आपको बारम्बार प्रणाम है| नवरात्री में विशेष रूप से इसका पाठ जरुर करना चाहिए | Tantroktam Devi suktam  Ke Fayde aur lyrics आइये जानते हैं क्या फायदे होते हैं दुर्गा शप्तशती तंत्रोक्त देवी सूक्तं के पाठ से : इसके पाठ से भय का नाश होता है | जीवन में स्वास्थ्य  और सम्पन्नता आती है | बुरी शक्तियों से माँ रक्षा करती हैं, काले जादू का नाश होता है | कमजोर को शक्ति प्राप्त होती है | जो लोग आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं उनके आय के स्त्रोत खुलते हैं | जो लोग शांति की तलाश में हैं उन्हें माता की कृपा से शांति मिलती है | जो ज्ञान मार्गी है उन्हें सत्य के दर्शन होते हैं | जो बुद्धि चाहते हैं उन्हें मिलता है | भगवती की क

Rinmukteshwar mahadev mantra Ke fayde

कर्ज मुक्ति के लिए महादेव का शक्तिशाली मंत्र |  Rin Mukteshwar Mahadev Mantra | spell to overcome from debt, कहाँ पर है ऋण मुक्तेश्वर मंदिर ?, कर्ज बढ़ने के ज्योतिषीय कारण | ये मंत्र आर्थिक समस्याओं को दूर करने में बहुत मददगार है, किसी भी प्रकार के ऋण से छुटकारा दिलाने में मदद करता है, भगवान् शिव की कृपा को आकर्षित करने का बहुत ही सशक्त और सरल माध्यम है | अगर आपके ऊपर कर्जा बढ़ता जा रहा हो तो ऐसे में ऋणमुक्तेश्वर महादेव की पूजा बहुत लाभदायक है |  Rinmukteshwar mahadev mantra Ke fayde Read in english about Benefits Of RINMUKTESHWAR MANTRA हर महीने जब लेनदार पैसे मांगने आते हैं तो अच्छा नहीं लगता है , स्थिति तब और ख़राब होती है जब की देने के लिए धन नहीं होता है | कर्जा सिर्फ उस व्यक्ति को ही परेशां नहीं करता है जिसने लिया है अपितु पुरे परिवार को शर्मनाक स्थिति से गुजरने के लिए मजबूर करता है अतः जितना जल्दी हो सके कर्जे से बाहर आने की कोशिश करना चाहिए |  आज के इस युग में हर व्यक्ति दिखावटी जीवन जीना चाहता है और इसी कारण एक अंधी दौड़ में शामिल हो गया है | सुख सुविधाओं को एकत्र करने की चाह