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Atmkarak Grah Kya Hota Hai Jyotish Mai

आत्मकारक ग्रह क्या होते हैं, कुंडली में कैसे पता करें की कौन सा ग्रह आत्मकारक है, हमारे जीवन पर atmkarak grah का क्या असर होता है? 

हमारा वर्तमान जन्म हमारे पूर्वजन्म के कर्मो से प्रभावित होता है| हर व्यक्ति अपनी अधूरी इच्छाओं की गठरी बांधे जन्म लेता है और उसके अनुसार ही उसके कर्म होने लगते हैं | जब तक किसी सिद्ध गुरु की कृपा से हमें सत्य का ज्ञान न हो जाए तब तक हम बार बार अपनी कभी न पूरी होने वाली इच्छाओ की गठरी को लेके जन्म लेते रहते हैं | इस चक्र से निकलना ही मोक्ष कहलाता है |  

आत्मकारक ग्रह का अध्ययन भी हमे अपने पूर्व जीवन और वर्तमान जीवन के बारे में बहुत कुछ जानकारी देता है |

आत्मकारक ग्रह क्या होते हैं, कुंडली में कैसे पता करें की कौन सा ग्रह आत्मकारक है, हमारे जीवन पर atmkarak grah का क्या असर होता है?
Atmkarak Grah Kya Hota Hai Jyotish Mai


Atmakarak Grah :

इसे जानने के लिए हमे अपने जन्म कुंडली में ग्रहों की डिग्री को देखना होगा | जिस ग्रह की डिग्री सबसे ज्यादा होती है वो ग्रह आत्मा कारक ग्रह कहलाता है जैसे की अगर चन्द्रमा ग्रह की डिग्री 29 है और बाकी सबकी इससे नीचे है तो चंद्रमा आत्मकारक ग्रह होगा | 

Read in English About Atmkarak Planet Importance in Astrology

आइये अब जानते हैं कुछ ख़ास बातें जो की आत्मकारक ग्रह निकालने के समय ध्यान रखना चाहिए :

  1. सबसे उच्चतम डिग्री वाला ग्रह आत्मकारक ग्रह कहलाता है |
  2. Atmkaarak ग्रह 8 ग्रहों में से कोई भी हो सकता है जैसे सूर्य, चंद्र, मंगल,  बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि या राहु | कुछ विद्वान् राहु को भी नहीं लेते हैं तो ऐसे में सिर्फ 7 ग्रहों में से ही लिया जाता है आत्मकारक ग्रह |
  3. जब राहू की डिग्री निकालनी हो तो जितना अंश जन्म कुंडली में दिया हो उसे 30 से घटा दे फिर जो आये वो वास्तविक अंश होगा राहू का | जैसे की अगर कुंडली में राहू 16 डिग्री दिखा रहा है तो उसे 30 से घटा दे तो राहू की वास्तविक डिग्री होगी 14 |
  4. आत्मकारक ग्रह से कम डिग्री वाला ग्रह अमात्य कारक कहलाता है |
  5. इससे निचे वाला ग्रह भात्र कारक कहलाता है |
  6. इससे निचे वाला ग्रह मात्र कारक कहलाता है |
  7. इससे निचे वाला ग्रह पुत्र कारक कहलाता है |
  8. इससे निचे वाला ग्रह ज्ञाति कारक कहलाता है |
  9. और सबसे कम डिग्री वाला ग्रह दारा कारक कहलाता है | 


आइये अब जानते हैं की कारक ग्रह किन विषयो से जुड़ा होता है ?

  • आत्म कारक ग्रह स्वयं से जुड़ा होता है अर्थात खुद का सूचक है ।
  • अमात्य कारक करियर का सूचक होता है ।
  • भात्र कारक भाई-बहन और पिता का सूचक होता है |
  • मातृ कारक, माता और शिक्षा का सूचक होता है |
  • पुत्र कारक, बच्चों, बुद्धि और रचनात्मकता का सूचक होता है |
  • ज्ञानी कारक, कलह, रोग और आध्यात्मिक साधना का सूचक होता  है |
  • दारा कारक, विवाह और साझेदारी का सूचक होता है |

आइये जानते हैं की आत्मकारक ग्रह का क्या महत्त्व है ज्योतिष में?

जैसा कि इसके नाम से पता चलता है की ये आत्म का कारक ग्रह है अर्थात स्व का कारक है होता है | केतु को छोड़कर कोई भी ग्रह Atmakarak grah हो सकता है | कुंडली में जिस घर में भी ये ग्रह होगा उस पर विशेष असर दिखाई देगा और वो भी उस समय ज्यादा दिखाई देगा जब उस ग्रह की महादशा, अन्तर्दशा या प्रत्यंतरदशा चलेगी | 

ATMAKARAK GRAH के द्वारा जातक के पूर्व जन्म के कर्मो को जाना जा सकता है और उसका असर इस जन्म में क्या होगा ये पता चलता है | 

जन्म कुंडली के जिस घर में आत्मकारक ग्रह मौजूद होता है वो घर महत्त्वपूर्ण बन जाता है | 

अगर atmkarak grah शुभ हो तो निश्चित ही जातक को अपार सफलता दिलाता है परन्तु अगर ये अशुभ हो तो जातक के जीवन में संघर्षो को बढ़ा देता है |

आइये अब जानते हैं की किस ग्रह का क्या प्रभाव हो सकता है आत्मकारक के रूप में जीवन में ?

  1. अगर जन्म कुंडली में सूर्य आत्मकारक ग्रह हो तो जातक को नाम, यश, पद की प्राप्ति होती है | जातक को अपने ज्ञान का अहंकार भी हो सकता है | ऐसे जातक के मुख पर अलग ही  तेज दिखता है, प्रभावशाली व्यक्तित्त्व होता है |
  2. अगर जन्म कुंडली में चन्द्रमा आत्मकारक ग्रह हो तो जातक भावुक होता है, उदार और सौम्य प्रकृति का होता है, पारिवारिक और सामाजिक जीवन उसे ज्यादा आकर्षित करती है | ऐसे लोग अपने सुरक्षा को लेके बहुत सतर्क रहते हैं | ऐसे लोगो का मन बहुत जल्दी अस्थिर हो जाता है और अगर चंद्रमा ख़राब हो तो मानसिक रोग भी दे सकता है | 
  3. अगर जन्म कुंडली में मंगल आत्मकारक ग्रह हो तो जातक प्रभावशाली, ताकतवर, गुस्सेवाला और आक्रामक हो सकता है | अपने लक्ष्य के प्रति जुनूनी होता है | ऐसे लोग कई बार जोश में होश भी खो बैठते हैं और नुकसान कर बैठते हैं | भूमि से लाभ होता है और साथ ही साहसिक कार्यो को करने में रूचि रहती है |
  4. अगर जन्म कुंडली में बुध आत्मकारक ग्रह हो तो जातक अपनी वाक् चातुर्यता से अपने कार्यो को संपन्न करने वाला होता है | बहुत जल्दी जल्दी अपने विचार को बदलने वाला होता है, समय के हिसाब से अपने व्यक्तित्त्व को बदलने वाला होता है | जातक की पहचान बहुत होती है, जातक बुद्धिमान होता है, व्यवहार कुशल होता है |
  5. अगर जन्म कुंडली में बृहस्पति आत्मकारक ग्रह हो तो जातक अच्छा शिक्षक, अच्छा सलाहकार, धार्मिक होता है |  ऐसे लोगो को कभी कभी अपने ज्ञान का अहंकार हो जाता है जिससे संबंधो को बनाने में परेशानी आती है | जातक विद्वान् और अच्छी तर्क शक्ति रखता है | ऐसे लोगो की वाणी गंभीर होती है |
  6. अगर जन्म कुंडली में शुक्र आत्मकारक ग्रह हो तो जातक आकर्षक व्यक्तित्त्व वाला होता है, विपरीत लिंग के प्रति विशेष आकर्षण होता है इनमे, कला जगत में विशेष रूचि होती है | ये जीवन को खुलके जीने वाले होते हैं | शुक्र खराब हो तो ऐसे लोग गलत संगत में पडके अय्याशी में भी बर्बाद हो सकते हैं अतः ध्यान रखना चाहिए | 
  7. अगर जन्म कुंडली में शनि आत्मकारक ग्रह हो तो जातक मेहनती होता है, साफ़ ह्रदय का होता है, अनुशाशनप्रिय होता है, दृढ़ निश्चयी होता है परन्तु जीवन में संघर्ष काफी होता है | ऐसे लोग कभी कभी शनि की अशुभता के कारण बहुत परेशां हो जाते हैं, अवसाद में चले जाते हैं |
  8. अगर जन्म कुंडली में राहु आत्मकारक ग्रह हो तो जातक जुनूनी होता है, क्रोधी होता है, अपने वर्चस्व के लिए उसमे एक विशेष ईच्छा पाई जाती है | परा विद्याओं को सीखने के लिए भी ऐसे लोग इच्छुक रहते हैं | 

आइये अब जानते हैं की आत्मकारक ग्रह का स्तेमाल कुंडली अध्ययन में कैसे करें ?

आत्मकारक ग्रह जातक को जीवन के सत्य का अनुभव कराने में मदद करते हैं अतः जातक धर्म के मार्ग पर चलके अपने कर्त्तव्यो का पालन करता रहे तो आत्मकारक ग्रह की दशा में उसे बहुत फायदा होता है | वो बंधन और मोक्ष को समझ सकता है, वो सत्य की अनुभूति कर सकता है,अपने समस्त दुखो से मुक्त हो सकता है | 

आत्मकारक ग्रह की स्थिति नवांश चार्ट का स्तेमाल करके देखा जाता है और इसमें कारकांश कुण्डली का भी स्तेमाल किया जाता है | 

आइये अब जान लेते हैं की कारकांश कुण्डली कैसे बनती है ?

Karkansh कुंडली बनाना बहुत आसान है | लग्न कुंडली में जो ग्रह आत्मकारक ग्रह है वो 9D chart में जिस राशि में बैठा हो वो राशि कारकांश कुंडली में लग्न बनता है और बाकी ग्रहों को लग्न कुंडली के हिसाब से बिठा दिया जाता है |

उदाहरण के लिए अगर लग्न कुंडली में गुरु आत्मकारक ग्रह है और नवमांश में वो कर्क राशि में बैठे हैं तो कारकांश कुंडली में कर्क राशि का लग्न में गुरु बैठेंगे और बाकी ग्रह लग्न कुंडली के हिसाब से बैठेंगे |

तो इस ज्योतिष लेख में हमने जाना की अत्म्कारक ग्रह और कारकांश कुंडली का महत्त्व क्या है |

अगर आपको भी जीवन में परेशानी आ रही हो तो अभी ज्योतिष को कुंडली दिखा के परामर्श लीजिये और जानिए –

  • कौन से ग्रह कुंडली में ख़राब है?
  • कौन सा रत्न भाग्य जगायेगा?
  • कौन सी पूजा शुभता लाएगी?
  • कौन सा दिन आपके लिए शुभ है ज्योतिष अनुसार?
  • कौन सा रंग आपके लिए शुभ है?

आत्मकारक ग्रह क्या होते हैं, कुंडली में कैसे पता करें की कौन सा ग्रह आत्मकारक है, हमारे जीवन पर atmkarak grah का क्या असर होता है? 

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