Skip to main content

Latest Astrology Updates in Hindi

Saptahik Rashifal

Saptahik Rashifal Aur Panchang, 28 जुलाई से 3 अगस्त  2024 तक की भविष्यवाणियां| प्रेम जीवन की भविष्यवाणी, आने वाले सप्ताह में किस राशि के जातकों को लाभ मिलेगा, आने वाले सप्ताह के महत्वपूर्ण दिन और राशिफल, जानें आने वाले सप्ताह में कितने सर्वार्थ सिद्धि योग और महत्वपूर्ण दिन मिलेंगे। आगामी साप्ताहिक सर्वार्थ सिद्धि योग: 28जुलाई को सूर्योदय से 3:34 दिन तक रहेगा सर्वार्थ सिद्धि योग | 30 जुलाई को सूर्योदय से 1:07 दिन तक रहेगा सर्वार्थ सिद्धी योग | 31 तारीख को सूर्योदय से रात्री अंत तक रहेगा सर्वार्थ सिद्धि योग | Saptahik Rashifal आइए अब जानते हैं कि आने वाले सप्ताह में हमें कौन से महत्वपूर्ण दिन मिलेंगे: पंचक 23 जुलाई मंगलवार को 12:07 दिन से शुरू होंगे और 27 तारीख को शाम 5:06 बजे तक रहेंगे | शीतला सप्तमी 27 को है | श्रावण सोमवार 29 को है। मंगला गौरी व्रत 30 जुलाई को है। कामिका एकादशी 31 जुलाई बुधवार को है। कृष्ण पक्ष प्रदोष व्रत 1 अगस्त गरुवार को है | शिव चतुर्दशी व्रत 2 तारीख शुक्रवार को है | आगामी सप्ताह का पूरा पंचांग और महूरत पढ़ें आइए अब जानते हैं 28 जुलाई से 03 अगस्त  २०२४  के बी

Astavakra Kaun Hain

अष्टावक्र कौन थे, जानिए उनसे जुडी 3 कथाएं, जानिए अष्टावक्र गीता की रचना कैसे हुई, Ashtavakra kaun the. 

अष्टावक्र एक ऐसे ज्ञानी पुरुष थे जिनका नाम आध्यात्मिक जगत में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है | आमतौर पर अष्टावक्र के जीवन के बारे में तीन कथाएं प्रचलित हैं जिनसे पता चलता है कि वह ज्ञानियों में शिरोमणि है| इन्हें गर्भ में ही आत्मज्ञान हो गया था |

अष्टावक्र कौन थे, जानिए उनसे जुडी 3 कथाएं, जानिए अष्टावक्र गीता की रचना कैसे हुई, Ashtavakra kaun the.
Astavakra Kaun Hain

आइये जानते हैं 3 अद्भुत घटनाएं जो ashtavakra जी की महानता को प्रमाणित करते हैं :

1.पहली कथा -

जब यह गर्भ में थे उस समय उनके पिता एक दिन वेद पाठ कर रहे थे तो इन्होंने गर्भ से ही अपने पिता को टोक दिया कि रुको यह सब बकवास है शास्त्रों में ज्ञान कहाँ,  ज्ञान तो स्वयं के भीतर है सत्य शास्त्रों में नहीं स्वयं में है शास्त्र तो शब्दों का संग्रह मात्र है यह सुनते ही उनके पिता श्री को अहंकार जाग उठा वे आत्मज्ञानी तो थे नहीं शास्त्रों के मात्र ज्ञाता थे और जिन्हें शास्त्रों का ज्ञान होता है उनमें इस जानकारी का अहंकार होता है इसी अहंकार के कारण व आत्म ज्ञान से वंचित रहते हैं |उन्हीं का वह पुत्र उन्हें उपदेश दे रहा है जो अभी पैदा भी नहीं हुआ, उसी समय उन्होंने उसे शाप दे दिया कि जब तू पैदा होगा तो 8 जगह से टेढ़ा मेढ़ा होगा और ऐसा ही हुआ इसीलिए उनका नाम पड़ा अष्टावक्र|

अष्टावक्र कौन थे, जानिए उनसे जुडी 3 कथाएं, जानिए अष्टावक्र गीता की रचना कैसे हुई, Ashtavakra kaun the. 



2.अष्टावक्र जी के संबंध में एक दूसरी कथा :

जब यह 12 वर्ष के थे तब राजा जनक ने बड़े-बड़े विद्वानों को बुलाकर एक सभा का आयोजन किया जिसमें तत्वज्ञान पर शास्त्रार्थ रखा गया था इसमें यह भी घोषणा की गई थी कि जो इसमें जीतेगा उसे सोना मढ़ी सींगों वाली सौ गाय दी जाएंगी | अष्टावक्र के पिता भी शास्त्रार्थ में सम्मिलित हुए शास्त्रार्थ आरंभ हुआ और वह लंबे समय तक चलता रहा तत्वज्ञान पर चर्चा चलती रही | शाम को अष्टावक्र जी को खबर मिली कि उनके पिता एक पंडित से हार रहे हैं यह सुनकर अष्टावक्र भी सभा में पहुंच गए सभा पंडितों की थी उनमें आत्मज्ञानी तो कोई था नहीं अष्टावक्र जब अपने शरीर से चलते हुए सभा में पहुंचे तो उनका रूप देखकर सभी सभासद हंस पड़े थोड़ी देर रुकने के बाद अष्टावक्र भी उन सभासदों को देखकर जोर-जोर से हंसने लगे उनकी हंसी देखकर राजा जनक ने पूछा कि यह विद्वान क्यों हंस रहे हैं यह तो मुझे समझ में आ गया तुम क्यों हंस रहे हो यह बात मेरी समझ में नहीं आई इस पर अष्टावक्र ने कहा कि मैं इसलिए हंसा कि इन चर्मकारों की सभा में आज सत्य का निर्णय हो रहा है और यह चर्मकार यहां क्या कर रहे हैं |

चर्मकारों शब्द सुनते ही सारी सभा में सन्नाटा छा गया | इससे पहले कि यह सभासद अपना रोष प्रकट करते राजा जनक ने स्थिति को संभालते हुए पूछा कि तुम्हारा मतलब क्या है यह मैं नहीं समझ पाया बहुत सीधी सी बात है कि चर्मकार चमड़ी का ही पारखी होता है वह ज्ञान को क्या समझे | ज्ञानी ज्ञान को देखता है चमड़ी को नहीं | इनको मेरा शरीर ही दिखाई देता है जिसे देख कर हंस रहे हैं | अतः ये ज्ञानी नहीं हो सकते चर्मकार ही हो सकते हैं |  हे राजन ! ज्ञानवान को आत्म दृष्टि रहती है वह आत्मा को ही देखता है और अज्ञानी को चर्म दृष्टि रहती है | इन वचनों को सुनकर राजा प्रभावित हुए उनके चरणों में साष्टांग दंडवत किया उन्हें ज्ञान का उपदेश देने हेतु महल में आमंत्रित किया | जब अष्टावक्र जी वहां पहुंचे तो राजा जनक उनके चरणों में बैठे और शिष्य-भाव से अपनी जिज्ञासाओं को इस 12 वर्ष के बालक अष्टावक्र से समाधान कराया वही शंका समाधान जनक-अष्टावक्र संवाद अष्टावक्र गीता के रूप में प्रचलित है|

अष्टावक्र कौन थे, जानिए उनसे जुडी 3 कथाएं, जानिए अष्टावक्र गीता की रचना कैसे हुई, Ashtavakra kaun the. 

3.अष्टावक्र जी के संबंध में एक तीसरी कथा :

राजा जनक ने आत्मज्ञान संबंधी अनेक शास्त्रों का अध्ययन किया था एक शास्त्र में लिखा था कि आत्मज्ञान बहुत ही सरल है इसके लिए कुछ करना नहीं पड़ता घोड़े पर चढ़ने के लिए उसकी रकाब में एक पांव रखने के बाद दूसरे रकाब में पांव रखने में जितना समय लगता है उससे भी कम समय में आत्मज्ञान संभव है | राजा जनक मुमुक्षु थे वह इसकी सत्यता को परखना चाहते थे इसके लिए उन्होंने देश के बड़े-बड़े विद्वानों को कहा कि या तो इस कथन को सत्य प्रमाणित कीजिए अन्यथा इस पंक्ति को शास्त्र से हटा दीजिए | वह सभी विद्वान तो पंडित ही थे जिन्हें शास्त्रों का पुस्तकीय ज्ञान मात्र था | वे शास्त्रार्थ करने में तो प्रवीण है किंतु स्वयं आत्मज्ञानी नहीं होने से ज्ञान प्राप्ति के इस रहस्य को सत्य प्रमाणित करने में असमर्थ थे  जिससे सब ने मना कर दिया इस बात को सुनकर राजा जनक ने उन सब को जेल में डाल दिया | जब अष्टावक्र ने यह समाचार सुना तो वे स्वयं राजा जनक के पास गए एवं उनकी इस चुनौती को स्वीकार करते हुए कहा कि जनक ऐसा संभव है शास्त्रों में जो लिखा है वह पूर्ण सत्य है मैं प्रमाणित करता हूं तुम इन सभी विद्वानों को पहले जेल से मुक्त करो और घोड़ा तैयार करवा कर मेरे साथ चलो राजा जनक ने सभी विद्वानों को मुक्त करवा दिया और अपना घोड़ा तैयार करवाया अष्टावक्र राजा जनक को लेकर शहर से दूर एकांत स्थान पर गए जहां घोड़ा रुकवा कर जनक ने अपना एक पाव घोड़े के एक रकाब में रख दिया तब अष्टावक्र ने उनसे पूछा कि अब बता तू ने शास्त्रों में क्या पढ़ा राजा जनक ने वही बात दोहराई अष्टावक्र ने कहा यह तो सत्य है किंतु इसके आगे तूने क्या पढ़ा जनक ने कहा कि इसके लिए पात्रता होनी चाहिए |इस पर अष्टावक्र ने कहा की क्या ये शर्त तुमने पूरी कर ली है ? जब तूने ये शर्त ही पूरी नहीं की तो आत्म ज्ञान कैसे संभव है | राजा जनक में आत्मज्ञान की उत्कट इच्छा थी वह हर कीमत पर इसे प्राप्त करना चाहते थे और जब ऐसा सद्गुरु उन्हें मिल गया तो वे इस अवसर को खोना भी नहीं चाहते थे राजा जनक में तीव्र बुद्धि व प्रतिभा थी, रहस्य को समझने की क्षमता थी | शास्त्रों के ज्ञाता होने के कारण वे जानते थे कि पात्रता के लिए आवश्यक है अहंकार से मुक्ति, पूर्ण समर्पण, शरीर व मन के भावों से मुक्ति, शास्त्र ज्ञान से मुक्ति| राजा जनक ने अष्टावक्र के सामने उस समय समर्पण कर दिया और कहा कि यह शरीर, मन, बुद्धि, अहंकार सब कुछ मैं आपको समर्पित करता हूं आप इसका जैसा चाहे उपयोग करें समर्पण भाव आते ही अहंकार खो गया जनक शून्य हो गए, स्थूल से संबंध छूट गया | अष्टावक्र जी ने पात्रता देखकर अपना संपूर्ण ज्ञान पात्र में उड़ेल दिया |

अष्टावक्र कौन थे, जानिए उनसे जुडी 3 कथाएं, जानिए अष्टावक्र गीता की रचना कैसे हुई, Ashtavakra kaun the. 

पात्र खाली था वह भर गया इस स्थिति में अष्टावक्र ने जनक के अंतः करण को छू लिया और जनक को घोड़े के दूसरे रकाब में पांव रखने के पूर्व ही आत्म बोध हो गया | घटना एक क्षण में घट गई वह उसी समय ध्यानस्त होकर समाधि में पहुंच गए| घोड़े के दूसरे रकाब में पांव रखने की सुधि ना रही | अष्टावक्र पास ही बैठ गए इसी प्रकार 3 दिन व्यतीत हो राज्य में हो हल्ला हो गया राज्य में अव्यवस्था होती देखकर मंत्री गण राजा को ढूंढने निकले तो देखा जंगल में राजा घोड़े के 1 रकाब में पांव रखके खड़े हैं अष्टावक्र जी भी समीप ही बैठे हैं दोनों शांत है एक मंत्री ने राजा से कहा महाराज 3 दिन हो गए राज्य की व्यवस्था करने में परेशानी हो रही है अब आप राजधानी चलिए इस पर जनक ने मंत्री से कहा कौन चलेगा,  ना यह शरीर मेरा है ना मन, मैं तो गुरु को समर्पित कर चुका हूं अब जैसा गुरु जी का आदेश होगा वैसा ही मैं करूंगा अष्टावक्र समझ गए कि इसे ज्ञान लाभ हो चुका है आत्मबोध हो चुका है केवल एक ही झटके में सारे बंधनों से मुक्त हो चुका है | अष्टावक्र जी ने राजा जनक को फिर से राज्य कार्य चलाने का आदेश दिया|

आगे के लेखों में हम अष्टावक्र गीता के अलग-अलग अध्याय को जानेंगे समझेंगे जो कि हमें एक नई दृष्टि प्रदान करेगा इस संसार के प्रति जो लोग जिज्ञासु हैं उन लोगों के लिए अष्टावक्र गीता वरदान से कम नहीं है तो आगे के लेखों को पढ़ने के लिए जुड़े रहिए हमसे |

अष्टावक्र कौन थे, जानिए उनसे जुडी 3 कथाएं, जानिए अष्टावक्र गीता की रचना कैसे हुई, Ashtavakra kaun the.

Comments

Popular posts from this blog

84 Mahadev Mandir Ke Naam In Ujjain In Hindi

उज्जैन मंदिरों का शहर है इसिलिये अध्यात्मिक और धार्मिक महत्त्व रखता है विश्व मे. इस महाकाल की नगरी मे ८४ महादेवो के मंदिर भी मौजूद है और विशेष समय जैसे पंचक्रोशी और श्रवण महीने मे भक्तगण इन मंदिरों मे पूजा अर्चना करते हैं अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए. इस लेख मे उज्जैन के ८४ महादेवो के मंदिरों की जानकारी दी जा रही है जो निश्चित ही भक्तो और जिज्ञासुओं के लिए महत्त्व रखती है.  84 Mahadev Mandir Ke Naam In Ujjain In Hindi आइये जानते हैं उज्जैन के ८४ महादेवो के मंदिरों के नाम हिंदी मे : श्री अगस्तेश्वर महादेव मंदिर - संतोषी माता मंदिर के प्रांगण मे. श्री गुहेश्वर महादेव मंदिर- राम घाट मे धर्मराज जी के मंदिर मे के पास. श्री ढून्देश्वर महादेव - राम घाट मे. श्री अनादी कल्पेश्वर महादेव- जूना महाकाल मंदिर के पास श्री दम्रुकेश्वर महादेव -राम सीढ़ियों के पास , रामघाट पे श्री स्वर्ण ज्वालेश्वर मंदिर -धुंधेश्वर महादेव के ऊपर, रामघाट पर. श्री त्रिविश्तेश्वर महादेव - महाकाल सभा मंडप के पास. श्री कपालेश्वर महादेव बड़े पुल के घाटी पर. श्री स्वर्न्द्वार्पलेश्वर मंदिर- गढ़ापुलिया

om kleem kaamdevay namah mantra ke fayde in hindi

कामदेव मंत्र ओम क्लीं कामदेवाय नमः के फायदे,  प्रेम और आकर्षण के लिए मंत्र, शक्तिशाली प्रेम मंत्र, प्रेम विवाह के लिए सबसे अच्छा मंत्र, सफल रोमांटिक जीवन के लिए मंत्र, lyrics of kamdev mantra। कामदेव प्रेम, स्नेह, मोहक शक्ति, आकर्षण शक्ति, रोमांस के देवता हैं। उसकी प्रेयसी रति है। उनके पास एक शक्तिशाली प्रेम अस्त्र है जिसे कामदेव अस्त्र के नाम से जाना जाता है जो फूल का तीर है। प्रेम के बिना जीवन बेकार है और इसलिए कामदेव सभी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनका आशीर्वाद जीवन को प्यार और रोमांस से भरा बना देता है। om kleem kaamdevay namah mantra ke fayde in hindi कामदेव मंत्र का प्रयोग कौन कर सकता है ? अगर किसी को लगता है कि वह जीवन में प्रेम से वंचित है तो कामदेव का आह्वान करें। यदि कोई एक तरफा प्रेम से गुजर रहा है और दूसरे के हृदय में प्रेम की भावना उत्पन्न करना चाहता है तो इस शक्तिशाली कामदेव मंत्र से कामदेव का आह्वान करें। अगर शादी के कुछ सालों बाद पति-पत्नी के बीच प्यार और रोमांस कम हो रहा है तो इस प्रेम मंत्र का प्रयोग जीवन को फिर से गर्म करने के लिए करें। यदि शारीरिक कमजोरी

Mrityunjay Sanjeevani Mantra Ke Fayde

MRITYUNJAY SANJEEVANI MANTRA , मृत्युंजय संजीवनी मन्त्र, रोग, अकाल मृत्यु से रक्षा करने वाला मन्त्र |  किसी भी प्रकार के रोग और शोक से बचाता है ये शक्तिशाली मंत्र |  रोग, बुढ़ापा, शारीरिक कष्ट से कोई नहीं बचा है परन्तु जो महादेव के भक्त है और जिन्होंने उनके मृत्युंजय मंत्र को जागृत कर लिए है वे सहज में ही जरा, रोग, अकाल मृत्यु से बच जाते हैं |  आइये जानते हैं mrityunjaysanjeevani mantra : ऊं मृत्युंजय महादेव त्राहिमां शरणागतम जन्म मृत्यु जरा व्याधि पीड़ितं कर्म बंधनः।। Om mriyunjay mahadev trahimaam sharnagatam janm mrityu jara vyadhi peeditam karm bandanah || मृत्युंजय संजीवनी मंत्र का हिंदी अर्थ इस प्रकार है : है कि हे मृत्यु को जीतने वाले महादेव मैं आपकी शरण में आया हूं, मेरी रक्षा करें। मुझे मृत्यु, वृद्धावस्था, बीमारियों जैसे दुख देने वाले कर्मों के बंधन से मुक्त करें।  Mrityunjay Sanjeevani Mantra Ke Fayde आइये जानते हैं मृत्युंजय संजीवनी मंत्र के क्या क्या फायदे हैं : भोलेनाथ दयालु है कृपालु है, महाकाल है अर्थात काल को भी नियंत्रित करते हैं इसीलिए शिवजी के भक्तो के लिए कु