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Devi Kavach Ke Lyrics aur Fayde

 दुर्गा कवच के फायदे, lyrics of devi kavach with meaning in hindi|, Durga Kavach in Hindi

देवी कवच के बारे में ब्रह्मा जी ने ऋषि मार्कंडेय को बताया था और इसमें 56 श्लोक हैं। मंत्र में शरीर के विभिन्न भागों से जुड़े देवी के विभिन्न नामों का उल्लेख है। हर नाम का एक विशिष्ट गुण और ऊर्जा होती है और विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान इसका जाप करना बेहद फायदेमंद होता है।

इसके अंतर्गत देवी के अलग अलग रूपों की स्तुति की गई है । भगवान ब्रह्मा ने प्रत्येक से देवी कवचम का पाठ करने और देवी का आशीर्वाद लेने का अनुरोध किया।

जो भी भक्त किसी भी प्रकार के उपरी बाधा से ग्रस्त है, नकारात्मक शक्तियों से ग्रस्त है उनके रक्षा के लिए एक अत्यंत शक्तिशाली प्रयोग दुर्गाशाप्तशती में दिया गया है जिसे की देवी कवच के नाम से जानते हैं | ये एक वरदान है हम सभी के लिए | जो भी इस कवच का पाठ रोज करते हैं वे उनके जीवन के कठिन-से-कठिन परिस्थितियों से भी आसानी से निकल जाते हैं |

दुर्गा कवच के फायदे, lyrics of devi kavach with meaning in hindi|, Durga Kavach in Hindi
Devi Kavach Ke Lyrics aur Fayde

आइये जानते हैं की दुर्गा कवच पढ़ने से क्या फायदा होता है?

  1. इसके पाठ से देवी के विभिन्न रूपों की कृपा प्राप्त होती है |
  2. जो लोग जीवन में अनेक शत्रुओ से परेशां है वे इस देवी कवच के पाठ से सुरक्षित रहते हैं |
  3. कैसा भी भय जीवन में हो उससे बचा जा सकता है |
  4. विषम से विषम परिस्थिति से भी बाहर निकालने की क्षमता है इस कवच में |
  5. Devi kavach के पाठ से रोग और शोक से से भी साधक बाहर आ सकता है |
  6. काले जादू से रक्षा होती है |
  7. इसके पाठ करने वाले की सभी दिशाओं से रक्षा होती है |
  8. भूत , प्रेत, शाकिनी, डाकिनी, राक्षस, ब्रह्मराक्षस आदि से रक्षा होती है |
  9. इस देवी कवच के नियमित पाठ से साधक को यश, कीर्ति,लक्ष्मी, विद्या की प्राप्ति होती है |
  10. जो भी इस devi kavach का पाठ तीनो संध्या में करता है वो तीनो लोकों में कहीं भी पराजित नहीं हो सकता है |
  11. ये शक्तिशाली कवच अकाल मृत्यु से बचाता है |

Lyrics of Devi Kavach :॥ देवी कवच ॥

 

विनियोग –

 ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः , अनुष्टुप् छन्दः , चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम् , दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम् , श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥


ॐ नमश्चण्डिकायै ॥


मार्कण्डेय उवाच

ॐ यद्गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम् ।

यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह ॥ १ ॥


 ब्रह्मोवाच

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम् ।

देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने ॥ २ ॥


तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥ ३ ॥


पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च ।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ॥ ४ ॥


Read About Devi kawacham In English


नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः ।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ॥ ५ ॥


अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे ।

विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः ॥ ६ ॥


न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे ।

नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि ॥ ७ ॥


यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते ।

ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः ॥ ८ ॥


प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना ।

ऐन्द्री गजसमारूढा वैष्णवी गरुडासना ॥ ९ ॥


माहेश्वरी वृषारूढा कौमारी शिखिवाहना ।

लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया ॥ १० ॥

 दुर्गा कवच के फायदे, lyrics of devi kavach with meaning in hindi|, Durga Kavach in Hindi

श्वेतरूपधरा देवी ईश्वरी वृषवाहना ।

ब्राह्मी हंससमारूढा सर्वाभरणभूषिता ॥ ११ ॥


इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः ।

नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः ॥ १२ ॥


दृश्यन्ते रथमारूढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः ।

शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम् ॥ १३ ॥


खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च ।

कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम् ॥ १४ ॥


दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च ।

धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै ॥ १५ ॥


नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे ।

महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि ॥ १६ ॥


त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि ।

प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता ॥ १७ ॥


दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी ।

प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी ॥ १८ ॥


उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी ।

ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा ॥ १९ ॥


एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना ।

जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः ॥ २० ॥

 दुर्गा कवच के फायदे, lyrics of devi kavach with meaning in hindi|, Durga Kavach in Hindi

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता ।

शिखामुद्योतिनी रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता ॥ २१ ॥


मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी ।

त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके ॥ २२ ॥


शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी ।

कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी ॥ २३ ॥


नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका ।

अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती ॥ २४ ॥


दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका ।

घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥ २५ ॥


कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला ।

ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी ॥ २६ ॥


नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी ।

स्कन्धयोः खडि्गनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी ॥ २७ ॥


हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च ।

नखाञ्छूलेश्वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्वरी ॥ २८ ॥


स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी ।

हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी ॥ २९ ॥


नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्वरी तथा ।

पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ॥ ३० ॥

 दुर्गा कवच के फायदे, lyrics of devi kavach with meaning in hindi|, Durga Kavach in Hindi

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी ।

जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ॥ ३१ ॥


गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी ।

पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी ॥ ३२ ॥


नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्चैवोर्ध्वकेशिनी ।

रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्वरी तथा ॥ ३३ ॥


रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती ।

अन्त्राणि कालरात्रिश्च पित्तं च मुकुटेश्वरी ॥ ३४ ॥


पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा ।

ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु ॥ ३५ ॥


शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्वरी तथा ।

अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी ॥ ३६ ॥


प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम् ।

वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना ॥ ३७ ॥


रसे रूपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी ।

सत्त्वं रजस्तमश्चैव रक्षेन्नारायणी सदा ॥ ३८ ॥


आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी ।

यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी ॥ ३९ ॥


गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके ।

पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी ॥ ४० ॥

 दुर्गा कवच के फायदे, lyrics of devi kavach with meaning in hindi|, Durga Kavach in Hindi

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा ।

राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता ॥ ४१ ॥


रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु ।

तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी ॥ ४२ ॥


पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः ।

कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति ॥ ४३ ॥


तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः ।

यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्चितम् ।

परमैश्वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान् ॥ ४४ ॥


निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः ।

त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान् ॥ ४५ ॥


इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।

यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः ॥ ४६ ॥


दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः ।

जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः ॥ ४७ ॥


नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः ।

स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम् ॥ ४८ ॥


अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले ।

भूचराः खेचराश्चैव जलजाश्चोपदेशिकाः ॥ ४९ ॥


सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा ।

अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्च महाबलाः ॥ ५० ॥

 दुर्गा कवच के फायदे, lyrics of devi kavach with meaning in hindi|, Durga Kavach in Hindi

ग्रहभूतपिशाचाश्च यक्षगन्धर्वराक्षसाः ।

ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ॥ ५१ ॥


नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते ।

मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम् ॥ ५२ ॥


यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले ।

जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा ॥ ५३ ॥


यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम् ।

तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी ॥ ५४ ॥


देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम् ।

प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः ॥ ५५ ॥


लभते परमं रूपं शिवेन सह मोदते ॥ ॐ ॥ ५६ ॥


॥इति देव्याः कवचम सम्पूर्ण ॥


ॐ दुं दुर्गाये नमः 

पढ़िए तंत्रोक्त देवी सूक्तं के फायदे क्या हैं ?

कीलक स्त्रोत्रम के फायदे 

आइये जानते हैं देवी कवच का हिंदी अर्थ :


 ॐ चण्डिका देवी को नमस्कार है।


 मार्कण्डेय उवाच


मार्कण्डेय जी ने कहा ] पितामह ! जो इस संसार में परम गोपनीय तथा मनुष्यों की सब प्रकार से रक्षा करने वाला है और जो अब तक आपने दूसरे किसी के सामने प्रकट नहीं किया हो, ऐसा कोई साधन मुझे बताइये ।


 ब्रह्मोवाच

 ब्रह्मा जी बोले ] ब्रह्मन् ! ऐसा साधन तो एक देवी का कवच ही है, जो गोपनीय से भी परम गोपनीय, पवित्र तथा सम्पूर्ण प्राणियों का उपकार करने वाला है। महामुने ! उसे श्रवण करो ।

 देवी की नौ मूर्तियाँ हैं, जिन्हें नवदुर्गा कहते हैं। उनके अलग-अलग नाम बताये जाते हैं। प्रथम नाम शैलपुत्री है। दूसरी मूर्ति का नाम ब्रह्मचारिणी है। तीसरा स्वरुप चन्द्रघण्टा के नाम से प्रसिद्ध है। चौथी मूर्ति को कूष्माण्डा कहते हैं। पाँचवीं दुर्गा का नाम स्कन्दमाता है।

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देवी के छठे रूप को कात्यायनी कहते हैं। सातवाँ कालरात्रि और आठवाँ स्वरुप महागौरी के नाम से प्रसिद्ध है। नवीं दुर्गा का नाम सिद्धिदात्री है। ये सब नाम सर्वज्ञ महात्मा वेद भगवान के द्वारा ही प्रतिपादित हुए हैं ॥ 

जो मनुष्य अग्नि में जल रहा हो, रणभूमि में शत्रुओं से घिर गया हो, विषम संकट में फँस गया हो तथा इस प्रकार भय से आतुर होकर जो भगवती दुर्गा की शरण में प्राप्त हुए हों, उनका कभी कोई अमङ्गल नहीं होता। युद्ध के समय संकट में पड़ने पर भी उनके ऊपर कोई विपत्ति नहीं दिखायी देती। उन्हें शोक, दुःख और भय की प्राप्ति नहीं होती 

जिन्होंने भक्तिपूर्वक देवी का स्मरण किया है, उनका निश्चय ही अभ्युदय होता है। देवेश्वरि ! जो तुम्हारा चिन्तन करते हैं, उनकी तुम निःसंदेह रक्षा करती हो ।

चामुण्डा देवी प्रेत पर आरूढ़ होती हैं। वाराही भैंसे पर सवारी करती हैं। ऐन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है। वैष्णवी देवी गरुड पर ही आसन जमाती हैं ।

माहेश्वरी वृषभ पर आरूढ़ होती हैं। कौमारी का वाहन मयूर है। भगवान विष्णु की प्रियतमा लक्ष्मी देवी कमल के आसन पर विराजमान हैं और हाथों में कमल धारण किये हुए हैं ।

 वृषभ पर आरूढ़ ईश्वरी देवी ने श्वेत रूप धारण कर रखा है। ब्राह्मी देवी हंस पर बैठी हुई हैं और सब प्रकार के आभूषणों से विभूषित हैं ।

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इस प्रकार ये सभी माताएँ सब प्रकार की योगशक्तियों से सम्पन्न हैं। इनके सिवा और भी बहुत सी देवियाँ हैं, जो अनेक प्रकार के आभूषणों की शोभा से युक्त तथा नाना प्रकार के रत्नों से सुशोभित हैं ।

ये सम्पूर्ण देवियाँ क्रोध में भरी हुई हैं और भक्तों की रक्षा के लिये रथ पर बैठी दिखायी देती हैं। ये शङ्ख, चक्र, गदा, शक्ति, हल और मुसल, खेटक और तोमर, परशु तथा पाश, कुन्त और त्रिशूल एवं उत्तम शार्ङ्ग धनुष आदि अस्त्र-शस्त्र अपने हाथों में धारण करती हैं।

दैत्यों के शरीर का नाश करना, भक्तों को अभयदान देना और देवताओं का कल्याण करना – यही उनके शस्त्र धारण का उद्देश्य है ॥

महान रौद्ररूप, अत्यन्त घोर पराक्रम, महान बल और महान उत्साह वाली देवि ! तुम महान भय का नाश करने वाली हो, तुम्हें नमस्कार है ।

तुम्हारी ओर देखना भी कठिन है। शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली जगदम्बिके ! मेरी रक्षा करो। पूर्व दिशा में ऐन्द्री ( इन्द्रशक्ति ) मेरी रक्षा करे। अग्निकोण में अग्निशक्ति, दक्षिण दिशा में वाराही तथा नैर्ऋत्यकोण में खड्गधारिणी मेरी रक्षा करे। पश्चिम दिशा में वारुणी और वायव्यकोण में मृग पर सवारी करने वाली देवी मेरी रक्षा करे ॥ 

उत्तर दिशा में कौमारी और ईशान कोण में शूलधारिणी देवी रक्षा करे। ब्रह्माणि ! तुम ऊपर की ओर से मेरी रक्षा करो और वैष्णवी देवी नीचे की ओर से मेरी रक्षा करें ।

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इसी प्रकार शव को अपना वाहन बनाने वाली चामुण्डा देवी दसो दिशाओं में मेरी रक्षा करें। जया आगे से और विजया पीछे की ओर से मेरी रक्षा करें।

वामभाग में अजिता और दक्षिणभाग में अपराजिता रक्षा करें। उद्योतिनी शिखा की रक्षा करे। उमा मेरे मस्तक पर विराजमान होकर रक्षा करें ।

ललाट में मालाधरी रक्षा करें और यशस्विनी देवी मेरी भौंहों का संरक्षण करे। भौंहों के मध्यभाग में त्रिनेत्रा और नथुनों की यमघण्टा देवी रक्षा करें ।

दोनों नेत्रों के मध्यभाग में शङ्खिनी और कानों की द्वारवासिनी रक्षा करे। कालिका देवी कपोलों की तथा भगवती शांकरी कानों के मूलभाग की रक्षा करें ।

सुगन्धा नासिका की और चर्चिका देवी ऊपर के ओठ की रक्षा करें। नीचे के ओठ की अमृतकला तथा जिह्वा की सरस्वती देवी रक्षा करें ।

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कौमारी दाँतों की और चण्डिका कण्ठप्रदेश की रक्षा करें। चित्रघण्टा गले की घाँटी की और महामाया तालु में रह कर रक्षा करें ।

कामाक्षी ठोढ़ी की और सर्वमङ्गला मेरी वाणी की रक्षा करे। भद्रकाली ग्रीवा की और धनुर्धरी मेरुदण्ड की रक्षा करें ।

कण्ठ के बाहरी भाग की नीलग्रीवा और कण्ठ की नली की नलकूबरी रक्षा करे। दोनों कंधों की खडि्गनी और मेरी दोनों भुजाओं की वज्रधारिणी देवी रक्षा करें ।

मेरे दोनों हाथों की दण्डिनी और अंगुलियों की अम्बिका रक्षा करें, शूलेश्वरी नखों की रक्षा करें। कुलेश्वरी कुक्षि (पेट) की रक्षा करें ।

महादेवी दोनों स्तनों की और शोकविनाशिनी देवी मेरे मन की रक्षा करें। ललिता देवी हृदय की और शूलधारिणी उदर की रक्षा करें।

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नाभि की कामिनी और गुह्यभाग की गुह्येश्वरी रक्षा करे। पूतना और कामिका लिङ्ग की और महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करें ।

भगवती कटिभाग की और विन्ध्यवासिनी मेरे घुटनों की रक्षा करें। सम्पूर्ण कामनाओं को देने वाली महाबला देवी मेरी दोनों पिण्डलियों की रक्षा करें ।

नारसिंही दोनों घुट्ठियों की और तैजसी देवी मेरे दोनों चरणों के पृष्ठभाग की रक्षा करें। श्रीदेवी पैरों की अंगुलियों में और तलवासिनी पैरों के तलुओं की रक्षा करें।

अपनी दाढ़ों के कारण भयंकर दिखायी देने वाली दंष्ट्राकराली देवी नखों की और ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशों की रक्षा करें। रोमावलियों के छिद्रों की कौबेरी और त्वचा की वागीश्वरी देवी रक्षा करें ।

पार्वती देवी रक्त, मज्जा, वसा, मांस, हड्डी और मेद की रक्षा करे। आँतों की कालरात्रि और पित्त की मुकुटेश्वरी रक्षा करें।

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मूलाधार आदि कमल कोशों की पद्मावती देवी और कफ की चूडामणि देवी रक्षा करें। नख के तेज की ज्वालामुखी रक्षा करें। जिसका किसी भी अस्त्र से भेदन नहीं हो सकता, वह अभेद्या देवी शरीर की समस्त संधियों में रह कर रक्षा करें।

ब्रह्माणि ! आप मेरे वीर्य की रक्षा करें। छत्रेश्वरी छाया की तथा धर्मधारिणी देवी मेरे अहंकार, मन और बुद्धि की रक्षा करें ।

हाथ में वज्र धारण करने वाली वज्रहस्ता देवी मेरे प्राण, अपान, व्यान, उदान और समान वायु की रक्षा करें। कल्याण से शोभित होने वाली भगवती कल्याणशोभना मेरे प्राण की रक्षा करें ।

 रस, रूप, गन्ध, शब्द और स्पर्श – इन विषयों का अनुभव करते समय योगिनी देवी रक्षा करे तथा सत्त्वगुण, रजोगुण और तमोगुण की रक्षा सदा नारायणी देवी करें ।

वाराही मेरी आयु की रक्षा करें। वैष्णवी धर्म की रक्षा करें तथा चक्रिणी ( चक्र धारण करने वाली ) देवी यश, कीर्ति, लक्ष्मी, धन तथा विद्या की रक्षा करें ।

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इन्द्राणि ! आप मेरे गोत्र की रक्षा करें। चण्डिके ! तुम मेरे पशुओं की रक्षा करो। महालक्ष्मी पुत्रों की रक्षा करे और भैरवी पत्नी की रक्षा करेंं।

मेरे पथ की सुपथा तथा मार्ग की क्षेमकरी रक्षा करें। राजा के दरबार में महालक्ष्मी रक्षा करें तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया देवी सम्पूर्ण भयों से मेरी रक्षा करें ।

देवि ! जो स्थान कवच में नहीं कहा गया है, अतएव रक्षा से रहित है, वह सब तुम्हारे द्वारा सुरक्षित हो, क्योंकि तुम विजयशालिनी और पापनाशिनी हो ।

यदि अपने शरीर का भला चाहे तो मनुष्य बिना कवच के कहीं एक पग भी न जाये – कवच का पाठ करके ही यात्रा करे। कवच के द्वारा सब ओर से सुरक्षित मनुष्य जहाँ-जहाँ भी जाता है, वहाँ-वहाँ उसे धन लाभ होता है तथा सम्पूर्ण कामनाओं की सिद्धि करने वाली विजय की प्राप्ति होती है।

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वह जिस-जिस अभीष्ट वस्तु का चिन्तन करता है, उस-उसको निश्चय ही प्राप्त कर लेता है। वह पुरुष इस पृथ्वी पर तुलनारहित महान ऐश्वर्य का भागी होता है ॥ 

कवच से सुरक्षित मनुष्य निर्भय हो जाता है। युद्ध में उसकी पराजय नहीं होती तथा वह तीनों लोकों में पूजनीय होता है ।

देवी का यह कवच देवताओं के लिये भी दुर्लभ है। जो प्रतिदिन नियमपूर्वक तीनों संध्याओं के समय श्रद्धा के साथ इसका पाठ करता है, उसे दैवी कला प्राप्त होती है तथा वह तीनों लोकों में कहीं भी पराजित नहीं होता। इतना ही नहीं, वह अपमृत्यु ( अकाल मृत्यु ) से रहित हो सौ से भी अधिक वर्षों तक जीवित रहता है ॥ 

मकरी, चेचक और कोढ़ आदि उसकी सम्पूर्ण व्याधियाँ नष्ट हो जाती हैं। कनेर, भाँग, अफीम, धतूरे आदि का स्थावर विष, साँप और बिच्छू आदि के काटने से चढ़ा हुआ जङ्गम विष तथा अहिफेन और तेल के संयोग आदि से बनने वाला कृत्रिम विष – ये सभी प्रकार के विष दूर हो जाते हैं, उनका कोई असर नहीं होता ।

इस पृथ्वी पर मारण-मोहन आदि जितने आभिचारिक प्रयोग होते हैं तथा इस प्रकार के जितने मन्त्र, यन्त्र होते हैं, वे सब इस कवच को हृदय में धारण कर लेने पर उस मनुष्य को देखते ही नष्ट हो जाते हैं।

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इतना ही नहीं, पृथ्वी पर विचरने वाले ग्रामदेवता, आकाशचारी देवविशेष, जल के सम्बन्ध से प्रकट होने वाले गण, उपदेश मात्र से सिद्ध होने वाले निम्नकोटि के देवता, अपने जन्म के साथ प्रकट होने वाले देवता, कुलदेवता, माला ( कण्ठमाला आदि ), डाकिनी, शाकिनी, अन्तरिक्ष में विचरने वाली अत्यन्त बलवती भयानक डाकिनियाँ, ग्रह, भूत, पिशाच, यक्ष, गन्धर्व, राक्षस, ब्रह्मराक्षस, बेताल, कूष्माण्ड और भैरव आदि अनिष्टकारक देवता भी हृदय में कवच धारण किये रहने पर उस मनुष्य को देखते ही भाग जाते हैं।

कवचधारी पुरुष को राजा से सम्मान वृद्धि प्राप्त होती है। यह कवच मनुष्य के तेज की वृद्धि करने वाला और उत्तम है ॥

कवच का पाठ करने वाला पुरुष अपनी कीर्ति से विभूषित भूतल पर अपने सुयश के साथ-साथ वृद्धि को प्राप्त होता है। जो पहले कवच का पाठ करके उसके बाद सप्तशती चण्डी का पाठ करता है, उसकी जब तक वन, पर्वत और काननों सहित यह पृथ्वी टिकी रहती है, तब तक यहाँ पुत्र-पौत्र आदि संतान परम्परा बनी रहती है ॥ 

फिर देह का अन्त होने पर वह पुरुष भगवती महामाया के प्रसाद से उस नित्य परमपद को प्राप्त होता है, जो देवताओं के लिये भी दुर्लभ है ।

वह सुन्दर दिव्य रूप धारण करता है और कल्याणमय शिव के साथ आनन्द का भागी होता है ।

॥इति देवी कवच सम्पूर्ण ॥


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उज्जैन मंदिरों का शहर है इसिलिये अध्यात्मिक और धार्मिक महत्त्व रखता है विश्व मे. इस महाकाल की नगरी मे ८४ महादेवो के मंदिर भी मौजूद है और विशेष समय जैसे पंचक्रोशी और श्रवण महीने मे भक्तगण इन मंदिरों मे पूजा अर्चना करते हैं अपनी मनोकामना को पूरा करने के लिए. इस लेख मे उज्जैन के ८४ महादेवो के मंदिरों की जानकारी दी जा रही है जो निश्चित ही भक्तो और जिज्ञासुओं के लिए महत्त्व रखती है.  84 Mahadev Mandir Ke Naam In Ujjain In Hindi आइये जानते हैं उज्जैन के ८४ महादेवो के मंदिरों के नाम हिंदी मे : श्री अगस्तेश्वर महादेव मंदिर - संतोषी माता मंदिर के प्रांगण मे. श्री गुहेश्वर महादेव मंदिर- राम घाट मे धर्मराज जी के मंदिर मे के पास. श्री ढून्देश्वर महादेव - राम घाट मे. श्री अनादी कल्पेश्वर महादेव- जूना महाकाल मंदिर के पास श्री दम्रुकेश्वर महादेव -राम सीढ़ियों के पास , रामघाट पे श्री स्वर्ण ज्वालेश्वर मंदिर -धुंधेश्वर महादेव के ऊपर, रामघाट पर. श्री त्रिविश्तेश्वर महादेव - महाकाल सभा मंडप के पास. श्री कपालेश्वर महादेव बड़े पुल के घाटी पर. श्री स्वर्न्द्वार्पलेश्वर मंदिर- गढ़ापुलिया

om kleem krishnaay namah mantra ka mahattw

om kleem krishnaya namah benefits in hindi, ॐ क्लीं कृष्णाय नमः मंत्र के लाभ और अर्थ, ॐ क्लीं नमः का जाप कैसे करे, क्लीं बीज का रहस्य वशीकरण मंत्र ॐ क्लीं कृष्णाय नमः का रहस्य.  क्लीं बीज मंत्र काली देवी से संबंधित है और बहुत शक्तिशाली है। इस मंत्र के जाप से एक दिव्य आभा और आकर्षण शक्ति विकसित होती है जो दैवीय ऊर्जाओं के साथ-साथ भौतिक सुखों को आकर्षित करने में मदद करती है।  श्री कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं और महान व्यक्तित्व, प्रेम, ज्ञान और बुद्धि के प्रतीक हैं। om kleem krishnaay namah mantra ka mahattw " ॐ क्लीं कृष्णाय नमः " एक अद्भुत मंत्र है जो जप करने वाले को सब कुछ प्रदान करने में सक्षम है और इसलिए भक्तों द्वारा दशकों से इसका उपयोग किया जाता रहा है। यह मंत्र देवी दुर्गा के साथ-साथ कृष्ण की भी शक्ति रखता है और इसलिए यह उन सभी के लिए एक दिव्य मंत्र है जो जीवन में जल्द ही सफलता चाहते हैं। "ॐ क्लीं कृष्णाय नमः" एक शक्तिशाली मंत्र है जो आंतरिक आध्यात्मिक ऊर्जा का आह्वान करता है जिसका लगातार जप किया जाता है इसलिए जो लोग आध्यात्मिक विकास चाहते हैं उनके लिए

Suar Ke Daant Ke Totke

Jyotish Me Suar Ke Daant Ka Prayog , pig teeth locket benefits, Kaise banate hai suar ke daant ka tabij, क्या सूअर के दांत का प्रयोग अंधविश्वास है. सूअर को साधारणतः हीन दृष्टि से देखा जाता है परन्तु यही सूअर पूजनीय भी है क्यूंकि भगवान् विष्णु ने वराह रूप में सूअर के रूप में अवतार लिया था और धरती को पाताल लोक से निकाला था. और वैसे भी किसी जीव से घृणा करना इश्वर का अपमान है , हर कृति इस विश्व में भगवान् की रचना है | बहुत से अनुभवी लोगो का मनना है कि सुअर के दांत के कई फायदे होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि वे इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प को बढ़ाते हैं, बाधाओं को दूर करने में मदद करते हैं, वित्तीय समृद्धि लाते हैं, नकारात्मक प्रभावों से बचाते हैं, प्रजनन क्षमता को बढ़ावा देते हैं, यौन शक्ति को बढ़ाते हैं आदि। Suar Ke Daant Ke Totke सूअर दांत के प्रयोग के बारे में आगे बताने से पहले कुछ महत्त्वपूर्ण बाते जानना चाहिए : इस प्रयोग में सिर्फ जंगली सूअर के दांत का प्रयोग होता है. किसी सूअर को जबरदस्त मार के प्रयोग में लाया गया दांत काम नहीं आता है अतः किसी भी प्रकार के हिंसा से ब