Surya ka gochar kumbh me, सूर्य का कुम्भ राशि में गोचर कब होगा 2025 में, क्या असर होगा 12 राशियों पर, जानिए राशिफल, surya kumbh raashi mai kab pravesh karenge. Surya ka gochar kumbh me: सौर मंडल के राजा सूर्य 12 फ़रवरी, बुधवार को रात्रि में लगभग 9:39 बजे कुम्भ राशि में प्रवेश करेंगे और अगले 1 महीने इसी राशि में रहेंगे | यहाँ पर पहले से ही बुध और शनि ग्रह बैठे हुए हैं जिसके कारण सूर्य, शनि और बुध की युति होगी | अतः लोगो के जीवन में और वातावरण में बड़े बदलाव देखने को मिलेंगे | सूर्य कुम्भ राशि में 14 मार्च २०25 तक रहेंगे और फिर मीन राशि में प्रवेश करेंगे | इस लेख में हम जानेंगे की सूर्य के कुम्भ राशि में गोचर का क्या असर होगा 12 राशियों पर | Surya ka Kumbh Rashi Mai gochar ka Rashifal वैदिक ज्योतिष के अनुसार सूर्य का सम्बन्ध पिता से है, मान-सम्मान से है, उच्च अधिकारियों, आत्मशक्ति, यात्रा आदि से है| कुंडली में मौजूद शुभ और शक्तिशाली सूर्य जातक को राजा बना देता है अर्थात जिस भी क्षेत्र में वो रहता है उसमे एक अलग ही पहचान बनाता है | सूर्य के कारण जातक को नेतृत्त्व...
Nagchandreshwar Mandir Saal Me Ek Baar Hi Kyu Khulta Hia ?, उज्जैन महाकाल में स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर का रहस्य |
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nagchandreshwar mandir ujjain |
उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर : क्यों खुलता है सिर्फ साल में एक दिन?
इस सवाल का जवाब हर भक्त जानना चाहता है, बहुतो को तो मालूम है पर अधिकतर लोगो को इसकी जानकारी नहीं है.
हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। हिंदू परंपरा में नागों को भगवान का आभूषण भी माना गया है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर का,जो की उज्जैन के प्रसिद्ध महाकाल मंदिर की तीसरी मंजिल पर स्थित है। इसकी खास बात यह है कि यह मंदिर साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं।
नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है।
पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं। शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।
आइये जानते है की क्या है पौराणिक मान्यता नागचंद्रेश्वर मंदिर को लेके ?
सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया।
लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।
यह मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। सभी की यही मनोकामना रहती है कि नागराज पर विराजे शिवशंभु की उन्हें एक झलक मिल जाए। लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं।
नागपंचमी पर वर्ष में एक बार होने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए रात 12 बजे मंदिर के पट खुलते है और दूसरे दिन रात 12 बजे मंदिर में आरती होक पट पुनः बंद कर दिए जाते हैं.
नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है।
नागपंचमी को उज्जैन के कलेक्टर भी नागचंद्रेश्वर मंदिर में पूजन करते हैं . यह सरकारी पूजा होती है । यह परंपरा रियासतकाल से चली आ रही है। रात्रि को 8 बजे श्री महाकालेश्वर प्रबंध समिति द्वारा पूजन होता है ।
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